________________ श्री कल्पसूत्र-बालावबोध (333) ऋषभदेव की. सन्तति, राज्याभिषेक और विनीतानगरी की स्थापना श्री ऋषभदेवजी ने सुनन्दा तथा सुमंगला इन दो रानियों के साथ भोग भोगते छह लाख पूर्व व्यतीत किये। तब सुमंगला ने भरत और ब्राह्मी इन दो पुत्र-पुत्री युगल को जन्म दिया तथा सुनन्दा ने बाहुबली तथा सुन्दरी इन दो पुत्र-पुत्री युगल को जन्म दिया तथा उसके उनचास केवल पुत्रयुगल ही हुए। इस तरह ऋषभदेवस्वामी के सौ पुत्र तथा दो पुत्रियाँ हुईं। काल के प्रभाव से अनुक्रम से दिन दिन युगलिकों में कषाय की वृद्धि होने लगी। उस समय 'ह' कार, 'म' कार और 'धिःकार' ये तीन प्रकार की दंडनीतियाँ जारी थीं, पर लोग इनका भी उल्लंघन करने लगे। इन्हें न मानने के कारण परस्पर क्लेश उत्पन्न होने से श्री ऋषभदेव के पास आ कर वे कहने लगे कि हमारा न्याय कीजिये। तब भगवान ने कहा कि मैं राजा नहीं हूँ। मेरे पिता नाभिकुलकर राजा हैं। तुम लोग उनके पास जाओ। यह सुन कर युगलिक नाभिराजा के पास गये। नाभिराजा ने कहा कि अब तुम्हारा राजा ऋषभदेव है। वह तुम्हारा न्याय करेगा। - इसी अवसर पर इन्द्र महाराज का आसन चलायमान हुआ। अवधिज्ञान से भगवान को राजगद्दी पर बिठाने का अवसर जान कर इन्द्र महाराज ने वहाँ आ कर भगवान को मुकुट, कुंडल, हारप्रमुख पहना कर, सिंहासन पर बिठा कर उनका राज्याभिषेक किया। उस समय युगलिक इन्द्र महाराज के कहने से जल लाने गये थे, पर राज्याभिषेक हो जाने के बाद वे जल ले कर आये। तब भगवान को श्रृंगारसहित सिंहासन पर बिराजमान देख कर युगलिकों को विवेकयुक्त विचार आया कि अन्य सब शरीर पर तो शोभा हो रही है, पर मात्र भगवान के पैर खाली दिखाई दे रहे हैं। यह सोच कर उन्होंने पैरों पर ही पानी डाला।' तब इन्द्र महाराज ने कहा कि ये युगलिक 1. कई प्रतों में लिखा है कि युगलिक आपस में झगड़ कर नाभिकुलकर के पास न्याय कराने आये। तब नाभिराजा ने कहा कि अब हम वृद्ध हो गये हैं, इसलिए ऋषभ से जा कर कहो। वह तुम्हारा न्याय करेगा। युगलिकों ने जा कर ऋषभजी से कहा। तब ऋषभजी ने कहा कि राज्याभिषेक कर के मुझे राजा नियुक्त करो। फिर युगलिकों ने धूल का एक बड़ा चबूतरा बना कर उस पर प्रभु को बिठाया। फिर वे अभिषेक के लिए पानी लाने गये।