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________________ (330) श्री कल्पसूत्र-बालावबोध प्रवेश करता, तो वे विमलवाहन के पास जा कर फरियाद करते। विमलवाहन अपराधी को 'ह' कार की सजा देते। इससे वह मन में समझ लेता कि अब मेरी बात गयी। फिर वह नहीं झगड़ता। यह प्रथम 'ह'कारनीति हुई। विमलवाहन के चन्द्रयशा भार्या थी। उनका शरीर नौ सौ धनुष्य प्रमाण था। ये पहले कुलकर हुए। फिर विमलवाहन के पुत्र चक्षुष्मान हुए। उनकी भार्या चन्द्रकान्ता थी और उनका शरीर आठ सौ धनुष्यप्रमाण था। उनकी भी 'ह' कार दंडनीति रही। ये दूसरे कुलकर हुए। तीसरे कुलकर यशोमान हुए। उनकी भार्या सुरूपा थी और उनका शरीर सात सौ धनुष्य प्रमाण था। उनके समय में 'म' कार दंडनीति रही। चौथे अभिचन्द्र नामक कुलकर हुए। उनकी भार्या का नाम प्रतिरूपा था। उनका शरीर साढ़े छह सौ धनुष्यप्रमाण था। उनके समय में भी 'म' कार दंडनीति रही। पाँचवें प्रसेनजित नामक कुलकर हुए। उनकी भार्या चक्षुष्मति थी। उनका शरीर छह सौ धनुष्यप्रमाण था। उनके समय में 'धिः' कार इतना कहने से युगलिक समझ जाते कि मुझे बड़ा दंड हुआ है। इसलिए 'धिः' कार दंडनीति जानना। छठे मरुदेव नामक कुलकर हुए। उनकी भार्या श्रीकान्ता थी। उनका शरीरमान साढ़े पाँच सौ धनुष्य का था। उनके समय में भी धिःकार दंडनीति रही। सातवें नाभि नामक कुलकर हुए। उनकी भार्या मरुदेवी थी। उनका देहमान पाँच सौ पच्चीस धनुष्य का था। उनके समय में भी 'धिःकार' कहे जाने पर अपराधी समझ जाता कि मुझे महादंड हुआ है। वह जीवन भर फिर कभी अन्याय नहीं करता। इस तरह पहले और दूसरे कुलकर के समय में 'ह' कार दंडनीति रही। तीसरे और चौथे कुलकर के समय में जघन्य से 'ह' कार और उत्कृष्ट से 'म' कार दंडनीति रही। याने बहुत अन्याय करने वाले को 'म' कहने से वह समझ जाता कि मुझे बड़ा दंड हुआ है। फिर वह कभी अन्याय नहीं करता। पाँचवें, छठे और सातवें कुलकर के समय में जघन्य से 'ह' कार, मध्यम से 'म' कार और उत्कृष्ट से 'धिः'कार ऐसी तीन प्रकार की दंडनीत शुरु हुई।
SR No.004498
Book TitleKalpsutra Balavbodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYatindravijay, Jayantsensuri
PublisherRaj Rajendra Prakashan Trust
Publication Year1998
Total Pages484
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_kalpsutra
File Size10 MB
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