________________ श्री कल्पसूत्र-बालावबोध (321) यह सुन कर धन सेठ बहुत खुश हुआ। सब साधुओं को आहार के लिए निमंत्रण कर वह उन्हें अपने डेरे में ले आया। उसके पास शुद्ध आहार में घी के कुप्पे थे। वह उन साधुओं को बड़े उत्साह से घी वहोराने लगा। उसके भाव बढ़ने लगे। इससे उसे समकित प्राप्त हुआ। फिर वर्षाकाल बीतने के बाद सब वसंतपुर पहुँचे। धर्मघोष आचार्य भी सार्थवाह को धर्मलाभ दे कर तीर्थयात्रा करने गये। धन भी अनेक दिन समकित पाल कर अन्त में शुभध्यान में देह त्याग कर दूसरे भव में उत्तरकुरुक्षेत्र में युगलिकों में उत्पन्न हुआ। वहाँ तीन पल्योपम की आयु भोग कर मरने के बाद तीसरे भव में सौधर्म देवलोक में देव हुआ। ___चौथे भव में देवलोक से च्यव कर पश्चिम महाविदेह की गंधिलावती विजय में शीतबल राजा की चन्द्रकान्ता रानी का महाबल नामक पुत्र हुआ। बड़े होने पर वह महाविषयलोलुपी भोगपुरन्दर हुआ। विनयवतीप्रमुख अनेक रानियों के साथ वह विषयसुख भोगने में मग्न रहता था और धर्म की बात जानता नहीं था। वह हमेशा गीत-गान, तान-मान और नाटक आदि में मस्त रहता था। इस तरह महामोह की निद्रा में उसका काल व्यतीत हो रहा था। एक बार उसके आगे नाटक हो रहा था और वह तन्मय हो कर देख रहा था। गीत में उसका मन लगा हुआ था। उस समय सुबुद्धि नामक प्रधान ने राजा को प्रतिबोधित करने के लिए एक गाथा कही... सव्वं विलवियं गीअं, सव्वं नर्से विडंबणा। सव्वे आभरणा भारा, सव्वे कामा दुहावहा।।१।। ये सब गीत विलापतुल्य हैं, सब नाटक विडंबनातुल्य हैं, सर्व आभरण भारतुल्य हैं और सर्व कामभोग दुःखदायी हैं। यह गाथा सुन कर राजा ने कहा कि हे प्रधान ! तुमने बिना प्रस्ताव के 1. कई आचार्यों का लिखना है कि घी के भरे हुए पाँच सौ कुप्पे वहोराये। फिर धन्ना ने सोचा कि अब तो बहुत वहोरा दिया। इस तरह धन्ना के परिणाम घटते जान कर साधुओं ने कहा कि बस, अब अधिक आवश्यकता नहीं है। सेठ के परिणाम थोड़ी देर घटे न होते, तो उसे केवलज्ञान हो जाता। पर वैसे अभिवर्द्धित भाव न रहने से उसे केवल समकित ही प्राप्त हुआ।