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________________ (320) श्री कल्पसूत्र-बालावबोध उपहार साधुओं को देने लगा, पर साधुओं ने सचित्त जान कर नहीं लिया। वह सार्थ धीरे धीरे प्रतिदिन थोड़े थोड़े कोस चलता था। मार्ग में चातुर्मास आ गया। बहुत बरसात हुई। नदियों में बाढ़ आ गयी। इस कारण से यात्रा का मार्ग बन्द हो गया। हरितकायप्रमुख जीवों की उत्पत्ति हुई। कीचड़ भी बहुत हो गया। इससे लोगों का चलना मुश्किल हो गया। तब सार्थ इकट्ठा हो कर तंबू तान कर- डेरा डाल कर जंगल में ही रहा। आचार्य धर्मघोष भी एक पर्वत की गुफा में निरवद्य स्थानक देख कर पाँच सौ साधुओं सहित मासखमण की तपस्या कर के चातुर्मासार्थ रहे और धर्मध्यान करने में प्रवृत्त हुए। ___धीरे-धीरे सार्थ के लोगों का संबल समाप्त हो गया। इसलिए सब लोग कन्दमूलफलादिक का आहार कर के दिन बिताने लगे। इससे साधुओं को भी पारणे में शुद्ध आहार मिलता नहीं था। एक बार वहाँ एक भाट आ पहुँचा। उसने सेठ को प्रसन्न करने के लिए सुभाषित वचन सुनाया। उसने कहा कि हे सेठ ! महापुरुष जो काम उठाते हैं- जो बात अंगीकार करते हैं, उसे पूरा करते हैं, अधूरा नहीं छोड़ते। ____ यह बात सुन कर सेठ को धर्मघोषसूरिजी याद आये। वह मन में सोचने लगा कि अरे ! मेरे कहने से साधु मेरे साथ आये और मैंने तो एक दिन भी उनकी सार-सम्हाल नहीं ली। इसलिए यह तो उनका विश्वासघात हुआ। अब सुबह के समय मुझे उनके पास जा कर क्षमायाचना करनी चाहिये। यह सोच कर प्रभातकाल में आचार्य के पास जा कर उन्हें वंदन कर के वह लज्जा से अपना मुँह नीचे कर के बैठ गया। फिर उसने विनती की कि हे स्वामिन् ! मेरा अपराध क्षमा करें। मैंने आपकी तरफ कभी ध्यान नहीं दिया। आपकी निगाह नहीं रखी। महाराज ! लोगों का सब संबल क्षीण हो गया है। आप मुझे कुछ आदेश दीजिये। हुक्म फरमाइये। तब आचार्य ने कहा कि हे सार्थेश ! हमारे लिए तुम किसी प्रकार की चिंता मत करो। हमारा धर्मध्यान सुखपूर्वक हो रहा है। तुम्हारे साथ के कारण हमने बहुत जंगल पार कर लिया। इसमें तुमने हमारे प्रति बहुत वात्सल्य रखा।
SR No.004498
Book TitleKalpsutra Balavbodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYatindravijay, Jayantsensuri
PublisherRaj Rajendra Prakashan Trust
Publication Year1998
Total Pages484
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_kalpsutra
File Size10 MB
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