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________________ श्री कल्पसूत्र-बालावबोध (319) अष्टम व्याख्यान श्री आदिनाथ भगवान का चरित्र कहते हैं ____ उस काल में उस समय में श्री ऋषभनाथ अरिहंत अयोध्या नगरी में हुए। इस कारण से ही भगवान कौशलिक कहलाते हैं। उनके चार कल्याणक उत्तराषाढ़ानक्षत्र में हुए और पाँचवाँ कल्याणक अभिजित्नक्षत्र में हुआ। उत्तराषाढ़ानक्षत्र में देवलोक से च्यव कर गर्भ में आये, उत्तराषाढा में जन्म हुआ, उत्तराषाढा में दीक्षा ली और उत्तराषाढा में केवलज्ञान उत्पन्न हुआ। इसी प्रकार अभिजित् नक्षत्र में भगवान मोक्ष गये। भगवान श्री ऋषभदेवजी के तेरह. भव . धण मिहुण सुर महब्बल, ललियंगो वयरजंघ मिहुणे य। सोहम्म विज्ज अच्चु, चक्की सव्वत्थ उसभे य।।१।। प्रथम भव- इस जंबूद्वीप के महाविदेहक्षेत्र में सुप्रतिष्ठित नगर में प्रियंकर राजा राज करता था। उस नगर में महा धनवान धन्ना नामक एक सार्थवाह रहता था। एक बार वह वसंतपुर नगर जाने के लिए तैयार हुआ। उसने नगर में घोषणा करवायी कि जिस किसी को वसंतपुर आना हो, वह मेरे साथ चले। मैं उसका निर्वाह करूँगा। ऐसी घोषणा सुन कर अनेक लोग उसके साथ जाने के लिए इकट्ठे हुए। बहुत बड़ा काफ़िला हुआ। . उस नगर में श्री धर्मघोषसूरिजी पाँच सौ साधुओं के साथ ठहरे हुए थे। यात्रा के लिए उनकी भी वसंतपुर जाने की इच्छा हुई। उन्होंने धन्ना सार्थवाह के पास जा कर उसे धर्मलाभ दे कर कहा कि हे सार्थवाह ! यदि तुम्हारी आज्ञा हो, तो हम भी वसंतपुर जाने के लिए साथ चलें। तब धन्ना ने कहा कि हे स्वामिन् ! आप सुखपूर्वक हमारे साथ पधारिये। तब आचार्य भी उसके साथ चले। रास्ते में चलते वक्त सेठ को आम का उपहार मिला। सेठ वह
SR No.004498
Book TitleKalpsutra Balavbodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYatindravijay, Jayantsensuri
PublisherRaj Rajendra Prakashan Trust
Publication Year1998
Total Pages484
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_kalpsutra
File Size10 MB
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