________________ (318) श्री कल्पसूत्र-बालावबोध सागरोपम बीतने पर श्री अभिनन्दनजिन का निर्वाण हुआ। उनके बाद बयालीस हजार तीन वर्ष साढ़े आठ महीने न्यून दस लाख करोड़ सागरोपम बीतने पर श्री वीर का निर्वाण हुआ। उसके बाद नौ सौ अस्सीवें वर्ष में पुस्तकलेखन हुआ। (2) दूसरे श्री अजितजिन मोक्ष जाने के बाद तीस लाख करोड़ सागरोपम बीतने पर श्री संभवनाथजी मोक्ष गये। उनके बाद बयालीस हजार तीन वर्ष साढ़े आठ महीने कम बीस लाख करोड़ सागरोपम बीतने पर श्री वीरजिन मोक्ष गये। उसके बाद नौ सौ अस्सीवें वर्ष में जिनागम पुस्तकारूढ हुआ। (1) पहले श्री ऋषभदेव भगवान मोक्ष जाने के बाद पचास लाख कोड़ि सागरोपम बीतने पर श्री अजितनाथ भगवान का निर्वाण हुआ। उनके बाद बयालीस हजार तीन वर्ष साढ़े आठ महीने कम पचास लाख करोड़ सागरोपम बीतने पर श्री वीर प्रभु का निर्वाण हुआ। उसके बाद नौ सौ अस्सीवें वर्ष में जिनागम पुस्तकारूढ हुआ। यह श्री महावीर प्रभु के निर्वाण से ले कर पश्चानुपूर्वी से अन्तर हुआ। अब चौथा, पाँचवाँ और छठा इन तीन आरों का प्रमाण एक कोड़ाकोड़ि सागरोपम का है। उसमें बयालीस हजार पचहत्तर वर्ष साढ़े आठ महीने कम करें, तब श्री महावीरजिन का जन्म हुआ। उसमें बहत्तर वर्ष की श्री महावीरस्वामी की आयु थी। चौथे आरे के तीन वर्ष साढ़े आठ महीने शेष रहे, तब श्री वीरप्रभु का निर्वाण हुआ। तथा इक्कीस हजार वर्ष का कालमान पाँचवें आरे का जानना और इक्कीस हजार वर्ष का कालमान छठे आरे का जानना। इन सब का योग करें तब एक कोड़ाकोड़ि सागरोपम काल पूर्ण होता है। जैनाचार्य श्रीमद् भट्टारक- विजय राजेन्द्रसूरीश्वर-सङ्कलिते श्रीकल्पसूत्रबालावबोधे सप्तमं व्याख्यानं समाप्तम्।।