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________________ (322) श्री कल्पसूत्र-बालावबोध यह वैराग्य उत्पन्न करने वाली गाथा क्यों कही? यत्र सरागस्तत्र विरागः कथं? . यत्र विरागस्तत्र सरागः कथं? यत्र श्रीरर्थः तत्राश्रीरर्थः कथं? इसलिए हे मंत्री ! बिना प्रस्ताव के यह बात किस काम की? . तब प्रधान ने कहा कि महाराज ! मैंने यह बात प्रस्ताव से ही कही है। आज मुझे केवली मिले थे। उन्होंने कहा कि तुम्हारे राजा की आयु एक महीना शेष है। इसलिए मैं आपको सचेत कर रहा हूँ। यह सुन कर राजा चौंक गया। मृत्यु के समान कोई भय नहीं है। फिर उसने मंत्री से कहा कि मैं तो मोहनींद में सोया हुआ था। तुमने जगाया तो सही, पर जब आग लगी हो तब कुआँ कैसे खोदें? आयु तो एक महीने की ही शेष है। अब धर्मसाधन कैसे हो सकता है? तब प्रधान ने कहा कि आप खेद मत कीजिये। एक दिन का चारित्र भी मोक्ष देने वाला होता है। यदि मोक्षप्राप्ति न हो, तो देवगति के सुख तो देता ही है। यह सुन कर पुत्र को राज्य सौंप कर, सात क्षेत्र में धन का उपयोग कर उसने अट्ठाई महोत्सव किया। फिर सुगुरु के पास चारित्र ले कर चौंतीस दिन तक चारित्र-पालन कर अन्त में अनशन पूर्वक देहत्याग किया। पाँचवें भव में वह ईशान देवलोक में ललितांग नामक सामानिक देव हुआ। उसे स्वयंप्रभा देवी बहुत प्रिय थी। वह उसके साथ विषयसख भोगता था। एक दिन स्वयंप्रभादेवी का च्यवन हो गया। उसके विरह से ललितांग मूर्च्छित हो गया। फिर होश में आने पर दुःखी हो कर शोक करते हुए वह रुदन करने लगा। उस समय सुबुद्धि मंत्री भी वहीं देवरूप में उत्पन्न हुआ था। उसने उसे प्रतिबोध दिया, तो भी उसका शोक नहीं मिटा। तब उस देव ने कहा कि तुम्हारी स्त्री को मैं जानता हूँ। उसे प्राप्त करने का उपाय भी बताता हूँ। तुम शोक मत करो। उस स्त्री का संबंध सनो धातकीखंड के महाविदेहक्षेत्र में नन्दगाँव में नागिल नामक एक महादरिद्री गृहस्थ रहता है। उसकी स्त्री नागश्री ने छह पुत्रियों को जन्म दिया है। कहा
SR No.004498
Book TitleKalpsutra Balavbodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYatindravijay, Jayantsensuri
PublisherRaj Rajendra Prakashan Trust
Publication Year1998
Total Pages484
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_kalpsutra
File Size10 MB
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