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________________ (308) श्री कल्पसूत्र-बालावबोध ___ आकाश में अनेक देवदेवांगना, इन्द्र-इन्द्राणी, रंभा-अप्सरा आयें, मन को भायें। किन्नरी गीत गाये, सरस्वती वीणा वाये (बजाये)। तुंबर गंधर्व नाचे, सहुमन साचे। कृष्ण-बलभद्र दसों दशार्ह उमावें। जीर्णदुर्ग की तरफ जान (बारात) आवे। जैसे ज्येष्ठमास उद्धान, साजन जन को अधिक सम्मान। याचक जन को देते दान, हुआ धवल मंगलं उच्चार। आया वर तोरणद्वार, देखे देखनहार। धन्य धन्य राजीमती नार, जिसने वर पाया श्री नेमिकुमार। प्रभु का तोरण से लौटना और राजुल का सन्ताप झरोखे में बैठी हुई राजीमती ने सखियों से पूछा कि मेरे पति कैसे हैं? तब सखियों ने कहा कि उस हाथी पर बैठ कर महाऋद्धि सहित जो चले आ रहे हैं, वे नेमजी हैं। प्रभु का रूप देख कर मोहित हो कर राजीमती सोचने लगी कि यह मेरा महान भाग्योदय है कि नेमजी जैसा वर यहाँ आ कर मेरे साथ विवाह करेगा। ऐसा सोचती हुई वह चन्द्रानना मृगलोचना सखियों के साथ बातें करने लगी। सखी ने कहा कि यद्यपि यह वर सर्वगुणसम्पन्न है, तो भी इसमें एक अवगुण है। वह यह कि उसका वर्ण श्याम है। वर तो गोरा होना चाहिये। तब राजीमती ने कहा कि यह तो तुम दूध में से पोरे निकालने लगी। श्याम वस्तुएँ तो बहुत गुणवान हैं। भूमि, चित्रावेल, अगर, कस्तूरी, मेघ, आँख की पुतली, कसौटी का पत्थर, मसि, रात्रि इत्यादिक सब वस्तुएँ श्याम हैं, पर ये संसार में भली कही जाती हैं। सफेद वस्तु तो कपूर है। उसका मिर्चअंगारे से मेल है। चित्रा और रोहिणी श्याम हो, तो ही शोभा देती हैं। निःकेवल नमक, अस्थि, हिम, श्वेतकुष्ठ ये सब सफेद हैं, पर इनमें क्या प्रशंसनीय है? कुछ भी तो नहीं। ___श्यामलवरणी वर प्रशस्य, देखी लोचन अमिय भरे। हृदयकमल खिल गये और मनोरथरूप बेल फैल गयी। इतने में राजीमती की दाहिनी आँख फड़कने लगी। तब वह शोक करने लगी। उसने जान लिया कि सर्वथा प्रभु का संयोग नहीं मिलेगा। फिर उसने सखी से कहा कि मेरा दाहिना अंग फड़क रहा है। यह सुन कर सखी ने कहा कि तू मंगल के
SR No.004498
Book TitleKalpsutra Balavbodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYatindravijay, Jayantsensuri
PublisherRaj Rajendra Prakashan Trust
Publication Year1998
Total Pages484
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_kalpsutra
File Size10 MB
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