________________ श्री कल्पसूत्र-बालावबोध (307) एक लाख कुमार कंबोजा जाति के अश्वों पर चढ़े। अनादृष्टप्रमुख तेरह लाख कुमार रेवाजाति के अश्वों पर आरूढ़ हुए। पालकप्रमुख सात लाख कुमार अष्टमंगल जाति के अश्वों पर चढ़े। दंडनेमिप्रमुख बारह लाख कुमार रेमंगली जाति के अश्वों पर सवार हुए। रथनेमिप्रमुख नौ लाख कुमार चन्द्रप्रभा जाति के घोड़ों पर चढ़े। महानेमिप्रमुख पन्द्रह लाख कुमार अग्निपंथा जाति के अश्वों पर आरूढ़ हुए। ऐसे यादव कुँवर, भोगी भ्रमर।जिनके जाने-माने कुल, भालों का बल। आगे-आगे चलें, थोड़ा-थोड़ा बोलें। थोड़े ठाकुर को नमें, थोड़ा दर्शकों के नमें। परनारी सहोदर, वाचा अविचल। शरणागत साधार, शूरवीर दातार। झंझार, रणांगण धीर, रिपुहृदयहल-सीर। कसबोई गरकाव। केसरीए पागे, लीधी ए वागे। काँधाल, मूछाल, भलभले भूपाल। आवे ऊमह्या, पंथे वह्या। तथा दो कोड़ि सेजवाले, चौरासी कोड़ि स्त्रियाँ गीतगान करें, छप्पन्न कोड़ि प्रलंब ध्वजा, बारह कोड़ि भाट बिरुदावली बोले। बारह कोड़ि सुखासन पालकी, पन्द्रह लाख बिरुदावली बोलें। पन्द्रह लाख खच्चर द्रव्य भरे, तीन लाख श्रीछत्र, बयालीस लाख रथ, तीन कोड़ि चामर ढालें, अस्सी लाख निशान बाजें, सत्तर लाख ढोल बाजें, छियानबे कोडिं भेरी बाजें, नौ लाख मादल बाजें, पैंतालीस कोड़ि छड़ीदार, साठ कोड़ि सुरहियाँ, बड़बड़ा वहीया। मंत्रीश्वर प्रधान, कहे कितने अभिधान। निन्यानबे कोड़ि सामान्य वहिल, हुई यों जान की चहिल पहिल। अब वरराजा को सौषधि नीर से कराया स्नान, उजवाला विशेष से वान। माता ने भालस्थल पर किया तिलक, अक्षत का प्रतिष्ठित ऊपर पदक। नौ कोडि का मुकुट, पचास कोड़ि का नवग्रहा, बारह कोड़ि के दो कुंडल, अड़तालीस कोड़ि का रत्नजड़ित तिलक, पच्चीस कोड़ि की मुद्रिका, पच्चीस कोड़ि का बहुरत्नजड़ित हार, दो लाख कोड़ि की रत्नजड़ित साँकली, जनोई की तरह पहनी। पन्द्रह कोडि की चंपकली, देवदत्त अमोलक पागड़ी, पच्चीस लाख कोड़ि की कवाई, इकानबे कोड़ि के दो बहिरखे, पैंतालीस कोड़ि के दो बाजूबंध, सत्ताईस लाख का कन्दोरा, पच्चीस कोड़ि का रत्नजड़ित कना, तीस कोड़ि की उवानही (पगरखी), छियानबे कोड़ि का अनेक रत्नजड़ित श्रीफलरूप पुष्पगेन्द। . अमोलक वस्त्र पहना कर, सकल श्रृंगार करा कर, आँखें आँज कर, मुख माँज कर सिर पर बाँधा खूप (सेहरा), शोभे सुरूप। मँगाया गजराज, सुवर्णमय साज। मेघाडंबर छत्र, प्रतिष्ठे पवित्र, चढ़े वरराज, मानो इन्द्र महाराज या मूर्तिमन्त कामराज, शोभा समाज। फैला तूर्य मंगल निनाद, गहगहा स्त्रीजनसाद।