________________ श्री कल्पसूत्र-बालावबोध (297) दुष्ट! मेरे छह भाइयों को तूने मारा है। अब मैं उसका बदला लेता हूँ। यह कह कर कंस की चोटी पकड़ कर उसे नीचे गिरा दिया और मुक्कों से मारा। इससे कंस मर कर नरक में गया। फिर यादवों ने मिल कर उग्रसेन राजा को पिंजरे से बाहर निकाल कर आजाद किया और सभा में ले जा कर बिठाया। तब लोगों ने जाना कि राम और कृष्ण दोनों वसुदेव के पुत्र हैं। फिर उग्रसेन राजा ने सोलह वर्ष की उम्र वाले श्रीकृष्ण के साथ तीन सौ वर्ष की उम्र वाली सत्यभामा का विवाह किया। शौरीपुर से यादवों का निर्गमन और कालकुमार की प्रतिज्ञा यादवों ने जरासंध के डर से. जीवयशा से पूछा कि क्या हम कंस का अग्निसंस्कार करे? तब जीवयशा ने कहा कि राम-कृष्ण तथा अन्य बहुत से यादवों के साथ कंस का दाह संस्कार किया जायेगा। तुम देखो तो सही आगे क्या होता है। यह सुन कर कृष्णजी ने कहा कि अरे रंडा ! तुझसे क्या होने वाला है? यह सुन कर जीवयशा वहाँ से निकल कर सीधे राजगृह गयी और अपने पिता के आगे खुले सिर रोने लगी। उसने कहा कि आपके जीवित रहते यादवों ने आपके दामाद को मार डाला है। यादव बहुत उन्मत्त हो गये हैं। यह सुन कर जरासंध ने कहा कि हे पत्री! त धैर्य धर। जो होना था, सो हो गया। अब राम और कृष्ण ये दोनों मेरे अपराधी हैं। उन दोनों को यहाँ ला कर यादव मेरे स्वाधीन करेंगे, तो ही मेरे राज्य में रह सकेंगे। अन्यथा उन सब यादवों को मैं मार डालूंगा। इस तरह जीवयशा को दिलासा दे कर सन्तुष्ट किया। ___फिर सोम नामक सामन्त को जरासंध ने यादवों के पास भेजा। उसने यादवों के पास जा कर समुद्रविजयप्रमुख राजाओं से कहा कि हे यादवो ! मेरी बात सुनो। जो होना था सो हो गया। अब सिर्फ राम और कृष्ण इन दो ग्वालपुत्रों को बाँध कर मेरे साथ जरासंध के पास भेज दो। इन दासों के कारण तुम्हारे सब यादवकुल का क्षय करना ठीक नहीं है। यह सुन कर समुद्रविजयजी बोले कि अरे सोम ! तू समझता नहीं है। ऐसे गुणवान और बलवान पुत्रों को मरवाने के लिए हम तुझे कैसे सौंप सकते हैं? अब तो हम वृद्ध हो गये हैं। कितने काल तक जीवित रहेंगे? इसलिए जो होना होगा, वह होगा। हम हमारे पुत्र जरासंध को नहीं देंगे। फिर बलभद्र ने कहा कि अरे सोम ! पिताओं के पास पुत्र माँगते तुझे शर्म नहीं आती? अरे ! अभी तो हमने एक भाई को मारने का बदला कंस से लिया है, परन्तु पाँच और भाइयों को मारने का बदला लेना तो शेष है। इसलिए यदि तू जीने की