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________________ (296) श्री कल्पसूत्र-बालावबोध यशोदा किसी अन्य काम में लगी थी, इसलिए उसने बलभद्र का वचन सुनाअनसुना कर दिया। तब बलभद्र ने कहा कि क्यों यशोदा ! मेरे भाई का पालनपोषण करने से क्या तू रानी बन बैठी? अपना दासत्व भूल गयी? क्या इस कारण से मेरी बात नहीं मानी? इतना कह कर श्रीकृष्ण को साथ ले कर बलभद्र ने कहा कि चलो, हम यमुना में ही स्नान कर के मथुरा जायेंगे। बलभद्र ने यशोदा से ऐसे कटु वचन कहे, इस कारण से श्रीकृष्ण नाराज हो गये। तब मार्ग में बलभद्र ने छह भाइयों का वध आदिक कंस से संबंधित सब वृत्तान्त कह दिया तथा यह भी कहा कि हम दोनों भाइयों की माताएँ अलग अलग हैं, पर पिता एक ही है। तुझे कंस के भय से यहाँ गोकुल में रखा है। यह सुन कर श्रीकृष्ण ने कहा कि यदि आज ही मैं मेरे छह भाइयों को मारने का बैर कंस से वसूल करूँ, तो ही मैं सचमुच कृष्ण हूँ। ___ यह कह कर मार्ग में यमुनानदी में स्नान के लिए प्रवेश किया। तब कालियद्रह में से कालीनाग सामने आया। श्रीकृष्ण ने उसे पकड़ कर उसकी नाक बींध कर, उसे कमलबेल से नाथ कर उस पर सवार हो कर उसे घोड़े की तरह दौड़ाया। यह बात मथुरा जा कर लोगों ने एक-दूसरे से कही। कंस ने भी लोगों के मुँह से सुना कि नंद गोपाल के पुत्र ने कालीनाग का दमन किया है। इतने में राम-कृष्ण दोनों अनेक ग्वालों के समूह से घिरे हुए नगर के द्वार पर आये। वहाँ चंपोत्तर और पद्मोत्तर इन दो हाथियों ने रोका। तब सब ग्वाल-बाल डरने लगे। फिर बलभद्र और श्रीकृष्ण ने हाथियों के दंतोशल उखाड़ कर उन्हें दूर फेंक दिया। इससे वे हाथी मर गये। फिर श्रीकृष्ण और बलभद्र दोनों मल्ल के अखाड़े में गये। वहाँ एक राजा को मंच से नीचे पटक कर स्वयं उस मंच पर बैठ गये। इसके बाद बलभद्र ने श्रीकृष्ण को अपना सब परिवार बताया तथा कंस भी बताया और कहा कि यह कंस अपना ही है, पर बड़ा दुष्ट है। इतने में कंस ने चाणूरमल्ल और मुष्टिकमल्ल इन दोनों को युद्ध के लिए मैदान में उतारा। अनुक्रम से श्रीकृष्ण ने चाणूरमल्ल को तथा बलभद्र ने मुष्टिकमल्ल को मार डाला। ___ इस तरह दोनों मल्लों को मरे हुए जान कर कंस क्रोधित हो कर बोला कि अरे सुभटो ! जिन्होंने इन दोनों साँपों को पाल-पोस कर बड़ा किया है, उन नन्द और यशोदा दोनों को बाँध कर पकड़ लाओ और घानी में पोल डालो। कंस के ऐसा कहने पर श्रीकृष्ण ने रोषारुण हो कर छलाँग मार कर कंस से कहा कि अरे
SR No.004498
Book TitleKalpsutra Balavbodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYatindravijay, Jayantsensuri
PublisherRaj Rajendra Prakashan Trust
Publication Year1998
Total Pages484
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_kalpsutra
File Size10 MB
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