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________________ श्री कल्पसूत्र-बालावबोध (295) उस समय-वसुदेवजी का एक महाबलवान पुत्र अनादृष्ट भी धनुष्य चढ़ाने के लिए रवाना हुआ। रास्ते में संध्या हो गयी, इसलिए गोकुल में ठहर गया। बलभद्र उसे पहचानते थे। उन्होंने उसकी बहुत सेवा की। सुबह होने पर अनादृष्ट ने बलभद्र से कहा कि मुझे कोई ऐसा मार्गदर्शक दो, जो मथुरा का मार्ग बता दे। तब बलभद्र ने श्रीकृष्ण को अनादृष्ट के साथ मार्ग बताने के लिए भेजा। रास्ते में अनादृष्ट का रथ पेड़ों में अटक गया। अनादृष्ट उसे पेड़ों से बाहर निकाल नहीं सका। तब श्रीकृष्णजी ने दोनों पेड़ों को लात मार कर उखाड़ दिया और मार्ग बना कर रथ को निकाल दिया। यह देख कर श्रीकृष्ण को बलवान जान कर अनादृष्टि अपने साथ मथुरा ले गया। वहाँ जा कर अनादृष्ट धनुष्य उठाने लगा, पर दैवयोग से उठा न सका। तब लोग उसे देख कर हँसने लगे। अनादृष्ट का उपहास श्रीकृष्ण से सहन नहीं हुआ। उन्होंने धनुष्य को सहजता से उठा लिया और प्रत्यंचा चढ़ा दी। सत्यभामा पास ही खड़ी थी। उसने श्रीकृष्ण के गले में वरमाला पहना दी। उस समय वसुदेवजी ने क्रोध कर के अनादृष्ट से कहा कि इसे तू यहाँ क्यों लाया है? इसे अभी ही वापस वहीं पहुँचा दे। यह सुन कर अनमदृष्ट चुपचाप श्रीकृष्ण को गोकुल में ले गया। इतने दिन तक श्रीकृष्ण को यह मालूम नहीं था कि बलभद्र उनके भाई हैं। ___अनुक्रम से श्रीकृष्ण सोलह वर्ष के हुए। उस समय कंस ने केशी घोड़ा, मेषखर तथा अरिष्टवृषभ ये सब गोकुल में भेजे। इन्होंने वहाँ जा कर गोकुल में उपद्रव करना शुरु किया। श्रीकृष्ण ने इन सबको मार डाला। इसी समय में कंस ने मल्लों का अखाड़ा लगाया। वहाँ अनेक मल्ल इकट्ठे हुए। उनमें चाणूरमल्ल और मुष्टिकमल्ल ये दोनों बहुत बलवान थे। उस समय कंस ने विचार किया कि धनुष्य चढ़ाने वाले को उस समय मैं ठीक से नहीं पहचान सका। इसलिए अब यदि वह किसी तरह यहाँ आ जाये, तो मैं उसे मार डालूँगा। यह सोच कर कंस एक तरफ बैठ गया। ऐसे में श्रीकृष्ण ने सुना कि आज मल्लयुद्ध है। उन्होंने मल्लयुद्ध देखने जाने का निश्चय कर बलभद्र को गुरु जान कर उन्हें पाँव छू कर कहा कि हे स्वामिन् ! आप आज्ञा दें तो मैं आज मल्लयुद्ध देखने मथुरा जाऊँ। तब बलभद्र ने सोचा कि वहाँ जाने से कदाचित् कंस के साथ युद्ध हो जाये, इसलिए कृष्ण को हमारा भाई भाई का रिश्ता बता देना चाहिये। यह सोच कर बलभद्र ने कहा कि हे यशोदा ! हमें स्नान के लिए गरम पानी दे। हमें आज मल्लयुद्ध देखने जाना है। उस समय
SR No.004498
Book TitleKalpsutra Balavbodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYatindravijay, Jayantsensuri
PublisherRaj Rajendra Prakashan Trust
Publication Year1998
Total Pages484
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_kalpsutra
File Size10 MB
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