________________ (294) श्री कल्पसूत्र-बालावबोध श्री कृष्णजी को देखने की देवकीजी की बहुत इच्छा होती, पर कंस के भय से पन्द्रह पन्द्रह दिन या महीने महीने बाद आज वत्स बारस है, आज गोत्राट है, आज काजली तीज है, ऐसे नये नये बहाने बना कर वे गोकुल में जातीं। इस कारण से ये सब दिन जैनेतरों के पर्व हुए। वहाँ जा कर देवकीजी श्रीकृष्ण को खेलाती, स्तनपान कराती और यशोदा से कहतीं कि तेरा पुत्र मुझे बहुत प्यारा लगता है। ऐसे वचन बोल कर वे पुनः लौट आतीं। इस तरह कृष्णजी बाललीला करते हुए यशोदाजी के दूध-दहीप्रमुख के बर्तन गिरा देते, फोड़ देते इत्यादि अनेक प्रकार की क्रीड़ाएँ करते थे। एक बार वसेदवजी ने देवकीजी से कहा कि तुम्हें वहाँ बार बार नहीं जाना चाहिये। यदि कंस को यह मालूम हो गया, तो वह और कुछ उत्पात करेगा। कृष्णजी जब सात-आठ वर्ष के हुए, तब उन्हें विविध कलाएँ सिखाने के लिए वसुदेवजी ने रोहिणी के पुत्र बलदेवजी को गुप्तरूप से भेजा और उसके गुप्त रहने का कारण कंस से संबंधित सब हकीकत उन्हें बता दीं। इस तरह बलदेवजी और कृष्ण दोनों गोकुल में रहने लगे। बलदेवजी ने श्रीकृष्ण को अनेक विद्याएँ और कलाएँ सिखायीं। अब श्रीकृष्ण चौदह वर्ष के हुए। राम और कृष्ण दोनों भाई ग्वालों के संग नाचते-कूदते, गाते-बजाते और नीले-पीले वस्त्र पहनते। कृष्ण अपने मस्तक पर मोरपंख लगाते, मुरली बजाते, गोपियों के संग गाते, दिनभर खेल खेलते और शाम को घर आते। एक बार कंस के मन में यह बात आयी कि साधु का वचन झूठा हुआ या नहीं? यह जानने के लिए उसने किसी निमित्तज्ञ से पूछा कि मुझे कोई मारने वाला है या नहीं? यह सुन कर निमित्तज्ञ ने कहा कि साधु का वचन झूठा नहीं हो सकता। तुम्हारा शत्रु कहीं पर बड़ा हो रहा है। वह मरा नहीं है। तब कंस ने पूछा कि यह मैं कैसे जान सकता हूँ? तब निमित्तज्ञ ने कहा कि जो अरिष्ट नामक बैल का दमन करेगा, कालियानाग को वश करेगा, तेरे केशीघोड़े का दमन करेगा, खर और मेष नामक खरों को मारेगा, चंपोत्तर और पद्मोत्तर नामक हाथियों को मारेगा, सारंगधनुष्य चढ़ायेगा और चाणूरमल्ल तथा मुष्टिकमल्ल को मारेगा, वह तुझे मारने वाला होगा। यह बात सुन कर कंस ने इसकी निगाह करने के लिए ढिंढोरा पिटवाया कि जो सारंगधनुष चढ़ायेगा, उसके साथ मैं मेरी बहन सत्यभामा का विवाह करूँगा। यह घोषणा सुन कर अनेक राजा वहाँ इकट्ठे हुए।