SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 312
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्री कल्पसूत्र-बालावबोध (279) फनाटोप कर के छत्र रखा और प्रभु के चरणों के नीचे कमल की रचना की। इस तरह वर्षा बन्द रखने का उपाय कर के वह स्वयं इन्द्राणीसहित भगवान के सम्मुख नाटक करने लगा। पर वर्षा बन्द नहीं हुई। तब धरणेन्द्र ने सोचा कि यह प्रलयकाल तो नहीं है, फिर इस तरह मेघ क्यों बरस रहा है? यह सोच कर अवधिज्ञान से देखा, तो मेघमालीकृत उपसर्ग मालूम पड़ा। तब उसने मेघमाली को ललकार कर कहा कि अरे दुष्ट! पापिष्ट ! उल्लंठ ! अधम ! तूने यह कैसा अकार्य शुरु किया है ! प्रभु ने तो तुझ पर गुण किया था, पर उल्टे तूने उसे अवगुण मान लिया। इससे तू विपरीत हो कर इनसे द्वेष करता है। यद्यपि भगवान स्वयं अतुलबल के स्वामी हैं, तो भी वे क्षमावान और दयालु हैं। वे तो सब सहन कर लेंगे, पर मैं तेरा अपराध सहन नहीं करूँगा। अरे मूर्ख ! तुझे अच्छा उपदेश भी बुरा लगा। वह तेरे लिए बैरकारक हो गया। इसलिए अब तुझे मैं तेरी कमाई दिखाऊँगा। तुने स्वामी की बहुत आशातना की है, पर अब तू भाग कर कहाँ जायेगा? ___यह कह कर धरणेन्द्र ने उस पर वज्र छोड़ा। तब जैसे बाज को देख कर तोते तथा कबूतर भयभीत होते हैं, वैसे कमठ भी भयभ्रान्त होते हुए अपनी देवांगनासहित भगवान के पास आ कर, उनके चरणों की शरण ले कर, भगवान को नमस्कार कर के अपना अपराध खमाने लगा और कहने लगा कि हे प्रभो ! आज के बाद मैं कभी ऐसा नहीं करूँगा। यह देख कर धरणेन्द्र ने कहा कि तू बड़े की शरण में आया है, इसलिए मेरा साधर्मिक भाई समझ कर तुझे छोड़ रहा हूँ। फिर दस भव का बैर खमा कर भगवान के आगे नाटक कर के कमठ अपने स्थान पर गया और धरणेन्द्र भी नाटक कर के अपनी इन्द्राणियों सहित अपने स्थान पर गया। यहाँ धरणेन्द्र ने तीन दिन तक भगवान के मस्तक पर फन का छत्र रखा था। इस कारण से वह नगरी अहिच्छत्रा नाम से प्रसिद्ध हुई।
SR No.004498
Book TitleKalpsutra Balavbodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYatindravijay, Jayantsensuri
PublisherRaj Rajendra Prakashan Trust
Publication Year1998
Total Pages484
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_kalpsutra
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy