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________________ (278) श्री कल्पसूत्र-बालावबोध काउस्सग्ग में रहे हुए देख कर इसे जातिस्मरण ज्ञान होगा। इसलिए हे प्रधान ! वह कोढ़ी ब्राह्मण मर कर मैं ईश्वर नामक राजा हुआ हूँ। फिर उस ईश्वर राजा ने भक्तिभाव से वहाँ मंदिर बनवाया और उसमें श्री पार्श्वनाथजी की प्रतिमा स्थापन की। वह कुकड़ेश्वर नामक तीर्थ हुआ। पार्श्वनाथ प्रभु को कमठासुर का उपसर्ग एक बार विहार करते हुए भगवान किसी नगर के नजदीक तापस के आश्रम के पास पहुँचे। इतने में सूर्यास्त हो गया। तब भगवान वटवृक्ष के नीचे एक कुएँ के पास अडिग ध्यान में काउस्सग्ग में रहे। उस समय पूर्वभव का वैरी अधम मेघमालीदेव अवधिज्ञान के बल से भगवान को खड़े देख कर, पूर्वभव का बैर याद कर, अमर्ष से क्रोध कर के उपसर्ग करने लगा। प्रथम उसने वेताल के रूप बना कर भगवान को डराया। पर भगवान उससे नहीं डरे। फिर सिंह, बिच्छू, सर्प, हाथीं आदि तथा अन्य भी अनेक प्रकार के रूप बना कर वह भगवान को काटने लगा और मसलने लगा, तो भी भगवान उससे क्षुभित नहीं हुए। वे चलायमान नहीं हुए। तब विशेष क्रोधारुण हो कर उसने भारी गर्जारव कर के बिजली उत्पन्न की तथा उसके साथ कल्पान्तकाल का पवन प्रवाहित कर उस पवन से धूल उड़ाते हुए आकाश को आच्छादित कर दिया। फिर धूल के साथ मिले हुए जल की मूसलाधार वर्षा की तथा ब्रह्मांडस्फोट सद्दश गर्जारव किया और दसों दिशाओं में बिजली के कण उत्पन्न कर के त्रास पहुँचाने लगा। ___ पानी का प्रवाह नदी की तरह बहने लगा। जोरदार पानी चढ़ा। आकाश अंधकारमय हो गया। उस समय भगवान के कंठ तक पानी आ गया, तो भी प्रभु नहीं डिगे। उसी समय धरणेन्द्र का आसन चलायमान हुआ। तब अवधिज्ञान के उपयोग से प्रभु पर उपसर्ग आया जान कर पद्मावतीप्रमुख अग्रमहीषियों सहित वहाँ आ कर उसने प्रभु.के मस्तक पर
SR No.004498
Book TitleKalpsutra Balavbodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYatindravijay, Jayantsensuri
PublisherRaj Rajendra Prakashan Trust
Publication Year1998
Total Pages484
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_kalpsutra
File Size10 MB
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