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________________ (280) श्री कल्पसूत्र-बालावबोध पार्श्वप्रभु का परिवार और मोक्षगमन श्री पार्श्वनाथस्वामी अनगार हुए तथा पाँच समिति और तीन गुप्ति से युक्त हुए। इस तरह ग्रामानुग्राम विचरते हुए और आत्मभाव में लीन रहते हुए तिरासी दिन बीते। फिर चौरासीवाँ रात्रि-दिन प्रवर्तमान था तब गरमी का पहला महीना और पहला पखवाड़ा चैत्र वदि चौथ के दिन विशाखानक्षत्र में चन्द्रमा का योग होने पर प्रथम दो प्रहर के काल समय में धावड़ी वृक्ष के नीचे पानीरहित चौविहार छ? तप किये हुए, निर्व्याघात रूप से आवरणरहित, परिपूर्ण प्रकाशमान सूर्यसमान केवलज्ञान और केवलदर्शन प्रभु को उत्पन्न हुए। इससे वे सब जीवों के भाव जानते हुए और देखते हुए विचरने लगे। श्री पार्श्वनाथजी को एक शुभ, दूसरा आर्यघोष, तीसरा विशिष्ट, चौथा ब्रह्मचारी, पाँचवाँ सोम, छठा श्रीधर, सातवाँ वीरभद्र और आठवाँ यशस्वी ये आठ विशाल गच्छ के स्वामी ऐसे गपाधरों की सम्पदा हुई। उन्हें आर्यदिन्नप्रमुख सोलह हजार साधुओं की उत्कृष्टी सम्पदा हुई तथा पुष्पचूलाप्रमुख अड़तीस हजार साध्वियों की उत्कृष्टी सम्पदा हुई। इसी प्रकार सुव्रत आदि एक लाख चौसठ हजार श्रावक तथा सुनन्दाप्रमुख तीन लाख सत्ताईस हजार श्राविकाओं की उत्कृष्टी सम्पदा हुई। श्री पार्श्वनाथजी को केवली तो नहीं, पर केवली जैसे साढ़े तीन सौ चौदह पूर्वधर मुनियों की उत्कृष्टी सम्पदा हुई। उन्हें चौदह सौ अवधिज्ञानियों की उत्कृष्टी सम्पदा हुई। इसी प्रकार एक हजार केवलियों की, ग्यारह सौ वैक्रियलब्धिवन्तों की और छह सौ ऋजुमति मनःपर्यवज्ञानियों की उत्कृष्टी सम्पदा हुई। उनके एक हजार साधु मोक्ष गये और दो हजार साध्वियाँ मोक्ष गयीं। भगवान को आठ सौ विपुलमति और छह सौ वादियों की सम्पदा हुई। उनके बारह सौ साधु अनुत्तर विमान में गये- एकावतारी हुए। यह प्रभु के परिवार का परिमाण जानना। ____ पुरुषादानी श्री पार्श्वनाथजी के दो प्रकार की अन्तकृत् भूमि हुई। उसमें एक युगान्तकृत् भूमि, सो श्री पार्श्वनाथजी के चार पाट तक मोक्षमार्ग चला। दूसरी पर्यायान्तकृत् भूमि, सो भगवान केवलज्ञान पाने के बाद तीन
SR No.004498
Book TitleKalpsutra Balavbodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYatindravijay, Jayantsensuri
PublisherRaj Rajendra Prakashan Trust
Publication Year1998
Total Pages484
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_kalpsutra
File Size10 MB
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