________________ श्री कल्पसूत्र-बालावबोध (273) समय कुरंग भील का जीव सातवीं नरक से मध्यम आयु पूर्ण कर उस वीरान में क्षीरगुफा में सिंह के रूप में उत्पन्न हुआ था। उसने सुवर्णबाहु मुनि को देखा और पूर्वभव के बैर से उन राजर्षि को मार डाला। यह आठवाँ भव जानना। नौवें भव में राजर्षि शभध्यान में मर कर दसवें प्राणत देवलोक में देवरूप में उत्पन्न हुए और सिंह मर कर चौथी नरक में गया। यह नौवाँ भव जानना। दसवें भव में मरुभूति का जीव दसवें देवलोक से च्यव कर श्री वामादेवी की कोख में उत्पन्न हुआ और कमठ का जीव चौथी नरक से आयु पूर्ण कर एक दरिद्री ब्राह्मण के घर पुत्ररूप में उत्पन्न हुआ। उसके मातापिता बचपन में ही मर गये। फिर उसे दुःखी जान कर लोगों ने उस पर दया कर के उसे बड़ा किया। अनुक्रम से उसे युवावस्था प्राप्त हुई, तब निर्धनता के कारण उसे स्त्री की प्राप्ति नहीं हुई। इससे अमर्ष धारण कर के पेट भरने के लिए उसने अज्ञान तप शुरु किया। तापसी दीक्षा ले कर वह पंचाग्नि साधने लगा। इससे वह कमठ के नाम से प्रसिद्ध हुआ। पार्श्वप्रभु का जन्म, विवाह और नागोद्धार पुरुषों में प्रधान श्री पार्श्वनाथ अरिहन्त तीन ज्ञानसहित माता की कोख में उत्पन्न हुए। माता ने चौदह स्वप्न देखे। (यहाँ स्वप्न पाठकों को बुलाया यावत् गर्भ की प्रतिपालना की, इत्यादि सब अधिकार श्री महावीरस्वामी की तरह जान लेना।) उस काल में उस समय में श्री पार्श्वनाथस्वामी शीतकाल का दूसरा महीना, तीसरा पखवाड़ा पौष वदि दशमी के दिन नौ महीने साढ़े सात दिन गर्भ में रह कर मध्यरात्रि में विशाखा नक्षत्र में चन्द्रमा का योग होने पर वामारानी की कोख से पुत्ररूप में जन्मे। जिस रात्रि में श्री पार्श्वनाथ जन्मे, उस रात्रि में बहुत देव आये। यावत् चौसठ इन्द्र जन्ममहोत्सवप्रमुख करने आये तथा दिग्कुमारिकाएँ आयीं, यह सब श्री महावीरस्वामी की तरह श्री पार्श्वनाथस्वामी का समझना। फिर अश्वसेन राजा ने जन्म महोत्सव कर के