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________________ (268) श्री कल्पसूत्र-बालावबोध सप्तम व्याख्यान पश्चानुपूर्वी न्याय से श्री पार्श्वनाथस्वामी के पाँच कल्याणक कहते हैं उस काल में उस समय में श्री पार्श्वनाथ अरिहंत तिरसठ शलाकापुरुषों में प्रसिद्ध, जिन्हें सब मत वाले जानते हैं, उनके पाँच कल्याणक विशाखानक्षत्र में हुए। विशाखानक्षत्र में देवलोक से च्यव कर वामादेवी की कोख में उत्पन्न हुए, विशाखानक्षत्र में जन्म हुआ, विशाखानक्षत्र में गृहस्थपने का त्याग कर साधुपना ग्रहण किया याने कि दीक्षा ली, विशाखानक्षत्र में सर्वोत्कृष्ट केवलज्ञान और केवलदर्शन उन्हें उत्पन्न हुआ और विशाखानक्षत्र में वे मोक्ष गये। इति संक्षेप वाचना। पार्श्वनाथ प्रभु का च्यवन और उनके दस भव उस काल में उस समय में पुरुषों में प्रधान श्री पार्श्वनाथ का ग्रीष्म का पहला महीना, पहला पखवाड़ा याने चैत्र वदि चौथ के दिन प्राणत नामक दसवें देवलोक से बीस सागरोपम की आयु पूर्ण कर च्यवन हुआ। वे इस जंबूद्वीप के भरतक्षेत्र में वाराणसी नगरी में अश्वसेन राजा की वामादेवी रानी की कोख में मध्यरात्रि में विशाखा नक्षत्र में चन्द्रमा का योग होने पर, देव से संबंधित आहार और देव से संबंधित शरीर का त्याग कर गर्भरूप में उत्पन्न हुए। श्री पार्श्वनाथ भगवान प्राणत देवलोक में किस भव से गये थे? यह दिखाने के लिए प्रथम उनके दस भव कहते हैं इस जंबूद्वीप के भरतक्षेत्र में पोतनपुर नगर के अरविन्द राजा के विश्वभूति नामक एक पुरोहित था। उसके अनुद्धरी नामक स्त्री थी तथा एक कमठ और दूसरा मरुभूति ये दो पुत्र थे। अनुक्रम से उनके माता-पिता के निधन के बाद राजा ने कमठ को पुरोहित पद दिया। कमठ स्वभाव से कठोर, लंपट, दुष्ट और बुरे लक्षण वाला था। उसकी स्त्री का नाम वरुणा था। इसके विपरीत मरुभूति सरल स्वभावी,
SR No.004498
Book TitleKalpsutra Balavbodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYatindravijay, Jayantsensuri
PublisherRaj Rajendra Prakashan Trust
Publication Year1998
Total Pages484
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_kalpsutra
File Size10 MB
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