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________________ (258) श्री कल्पसूत्र-बालावबोध और पृष्ठचंपा में तीन चौमासे वर्षाकाल के हुए। विशाला नगरी में और वाणिज्यग्राम में बारह चौमासे वर्षाकाल के हुए। राजगृह नगर के नालंदापाड़ा के बाहर चौदह चौमासे वर्षाकाल के हुए। मिथिला नगरी में छह चौमासे हुए। भद्रिका नगरी में दो चौमासे हुए। आलंभिका नगरी में एक चौमासा हुआ। श्रावस्ती नगरी में एक चौमासा हुआ और अनार्य देश में एक चौमासा हुआ। इस प्रकार कुल इकतालीस चौमासे हुए। अंतिम बयालीसवें चौमासे में मध्यमा पावापुरी नगरी में हस्तिपाल राजा की पुरानी लेखकशाला में जकात के कारकून की सभा में भगवान वर्षाकाल में रहे। ___ उस चौमासे का चौथा महीना सातवाँ पखवाड़ा कार्तिक वदी अमावस्या की मध्यरात्रि में भगवान श्री महावीरस्वामी कालप्राप्त हुए। जाति-जरामरण-बंधन याने जन्मना, वृद्ध होना और मरना, इनके बन्धन को काट कर सिद्ध हुए। तत्त्व के जानकार हुए और मुक्त हुए। सब दुःखों का उन्होंने अन्त किया। वे सन्तापरहित हुए। उनके सब दुःखों का क्षय हुआ। पाँच संवत्सरों में से चन्द्र नामक दूसरा संवत्सर चल रहा था तब, प्रीतिवर्द्धन नामक मास याने कार्तिक मास में, नन्दीवर्द्धन नामक पक्ष में, अग्निवेश्य नामक दिन-कहीं इस दिन का नाम 'उपशम' भी कहा गया है, देवानन्दा नामक रात्रि- कहीं इसका दूसरा नाम 'निरत्ति' भी लिखा है, जिस लव में भगवान मोक्ष में गये, उस लव का नाम अर्च है, याने अर्च नामक लव, मुहूर्त नामक प्राण याने श्वासोच्छ्वास, सिद्ध नामक स्तोक, नाग नामक करण, सर्वार्थसिद्ध नामक मुहूर्त, स्वाति नामक नक्षत्र के साथ चन्द्रमा का योग होने पर भगवान कायस्थिति, भवस्थिति समाप्त कर कालगत हुए। यावत् मन से संबंधित, शरीर से संबंधित सब दुःखों से रहित ___ जिस रात्रि में श्रमण भगवान श्री महावीरस्वामी कालगत हुए, उस रात्रि में चार निकाय के बहुत से देव और बहुत सी देवियाँ ये सब स्वर्गलोक से नीचे तिरछे लोक में उतरने लगे। इससे तथा ऊँचे ऊर्ध्वलोक में जाने लगे, इससे उस रात में आकाश में बहुत उद्योत हुआ। जिस रात में श्रमण
SR No.004498
Book TitleKalpsutra Balavbodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYatindravijay, Jayantsensuri
PublisherRaj Rajendra Prakashan Trust
Publication Year1998
Total Pages484
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_kalpsutra
File Size10 MB
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