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________________ श्री कल्पसूत्र-बालावबोध (257) फिर गौतमस्वामी ने पूछा कि हे शिष्यो ! क्या तुम सब पारणा करोगे? उनके हाँ कहने पर वे अपनी लब्धि से सवा सेर का एक पात्र भर लाये और तापसों से कहा कि उठो और पारणा करो। तब खीरपात्र देख कर तापस कहने लगे कि खीर तो थोड़ी है और खाने वाले अधिक हैं। तो इतनी-सी खीर से क्या आँखों में अंजन होगा? या सबको एक एक तिलक किया जायेगा? फिर गौतमस्वामी ने कहा कि हे शिष्यो ! मंडली में चलो। मुझे पारणा कर के गुरु के पास जाना है। यह कह कर उन्हें मंडली में बिठाया। फिर तापसों का सन्देह मिटाने के लिए खीरपात्र में अपना अंगूठा रखा और अक्षीण लब्धि से पन्द्रह सौ तीन तापसों को पारणा कराया तथा स्वयं ने भी पारणा किया। वहाँ पाँच सौ एक तापसों को तो खीर से पारणा करते करते, श्री गौतम के गुणों का चिन्तन करते करते केवलज्ञान उत्पन्न हो गया और पाँच सौ एक को प्रभु का समक्सरण देख कर केवलज्ञान उत्पन्न हुआ तथा शेष पाँच सौ एक तापसों को श्री वीर भगवान का मुख देखते ही केवलज्ञान उत्पन्न हुआ। इस तरह पन्द्रह सौ तीन तापस केवली हो गये। वे वीर भगवान को वन्दन कर केवली की सभा में जाने लगे, तब गौतमजी ने कहा कि हे शिष्यो ! तुम सब छद्मस्थों की सभा में बैठो। वह तो केवली की सभा है, इसलिए वहाँ नहीं बैठना चाहिये। तब श्री वीर भगवान बोले कि हे गौतम ! तुम केवलियों की आशातना मत करो। ये पन्द्रह सौ तीन केवली हो गये हैं। यह सुन कर गौतम बहुत चिन्तित हुए। वे सोचने लगे कि देखो ! मेरे शिष्य केवली हो गये, पर मैं केवली नहीं हो सका। इस प्रकार मन में बहुत बहुत खेद करने लगे। तब भगवान ने कहा कि हे गौतम! तुम खेद मत करो। अन्त में अपन दोनों एक समान होंगे। चातुर्मास संख्या और प्रभु महावीर का निर्वाण ___ उस काल में उस समय में श्रमण भगवान श्री महावीरस्वामी का अस्थिग्राम में वर्षाकाल का पहला चौमासा हुआ। उसके बाद चंपानगरी में
SR No.004498
Book TitleKalpsutra Balavbodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYatindravijay, Jayantsensuri
PublisherRaj Rajendra Prakashan Trust
Publication Year1998
Total Pages484
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_kalpsutra
File Size10 MB
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