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________________ श्री कल्पसूत्र-बालावबोध (259) भगवान श्री महावीरस्वामी कालगत हुए उस रात में बहुत देव-देवियाँ आतेजाते बहुत ही आकुल-व्याकुल हुए। इससे अव्यक्त शब्द (कोलाहल) हुआ। जिस रात्रि में भगवान श्री महावीरस्वामी कालगत हुए, उस रात्रि में गौतम इन्द्रभूति अणगार जो भगवान के शिष्य थे, उनका प्रेमबन्धन टूटा। इससे श्री गौतमस्वामी को केवलज्ञान और केवलदर्शन उत्पन्न हुआ। श्री गौतमस्वामी को केवलज्ञान कैसे उत्पन्न हुआ? अपना अन्त समय जान कर परमात्मा श्री महावीरदेव ने श्री गौतमस्वामी का अपने पर निबिड स्नेह जान कर, उस प्रशस्त स्नेहराग का निवर्त्तन करने के लिए संध्या समय से पूर्व श्री गौतमस्वामी को देवशर्मा ब्राह्मण को प्रतिबोध देने के लिए समीपवर्ती गाँव में भेज दिया था। उस ब्राह्मण को प्रतिबोध दे कर वहाँ रातभर ठहर कर वे सुबह लौट पड़े। तब मार्ग में उन्होंने कई देवों को शून्यचित्त (उदास) देखा। फिर उपयोग से वीर निर्वाण जान लिया, तब वे वाहत जैसे मूर्च्छित हो गये। थोड़ी देर बाद सावधान हुए, तब मोहवश विलाप करने लगे कि हे प्रभो ! आप तीन लोक के सूर्य अस्त हो गये, इसलिए अब मिथ्यात्व अंधकार फैलने लगेगा। कुतीर्थरूप उल्लुओं के समूह जागृत हो कर गर्जारव करेंगे। दुर्मति दुष्कालरूप राक्षस प्रवेश करेगा। कुमतिरूप चोर सावधान होंगे। जैसे सूर्य अस्त होने पर कमल मुरझा जाता है, वैसे चतुर्विध संघरूप कमल मुरझा जायेगा। जैसे चन्द्र के बिना आकाश, दीपक के बिना मंदिर और सूर्य के बिना दिन सुशोभित नहीं होता, वैसे आपके बिना यह भरतक्षेत्र शोभारहित हो जायेगा। हे वीर ! आपके बिना अब सात प्रकार के इति उपद्रव शुरु होंगे। हे वीर ! आपके बिना पाखंडीरूप तारे टिमटिमाने लगेंगे। आपके बिना धर्मरूप चन्द्रमा को पापरूप राहु ग्रसेगा। . हे महावीरदेव ! अब मैं किसके चरणकमल में बैठ कर उल्लसित हो कर अपने मन के सन्देह पूछूगा? किसे मैं भगवान कह कर बुलाऊँगा? मैं किसे नमन करूँगा? हे प्रभो ! अब मुझे आपके बिना कौन ‘गौतम' कह के
SR No.004498
Book TitleKalpsutra Balavbodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYatindravijay, Jayantsensuri
PublisherRaj Rajendra Prakashan Trust
Publication Year1998
Total Pages484
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_kalpsutra
File Size10 MB
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