________________ (236) श्री कल्पसूत्र-बालावबोध के वृक्ष पर चढ़ना नहीं छोड़ा। तब उसने कहा कि हे भोली ! यह तेरा दोष नहीं है, क्योंकि संसार में बराबरी वाले लोग जब मिलते हैं, तब वे प्रसन्न होते हैं। वैसे ही तुम दोनों बराबर हो, तो इसमें कोई आश्चर्य नहीं है। इसी प्रकार ये देव और ज्ञानी भी दोनों जोड़ के मिले हैं। उस ऐन्द्रजालिक को ये देव वहाँ जा कर वन्दन करते हैं, तो क्या ये देव भी भूले पड़े, ऐसा नहीं कहा जायेगा? इन्द्रभूति और भी सोचने लगा कि मेरे जैसे पंडित के होते हुए यह लोगों को ठगता है और ज्ञानी नाम धारण करता है, तो यह मुझ जैसे पंडित से कैसे सहन किया जाये? मुझसे तो इसका मिथ्या अभिमान सहा. नहीं जाता और इस ढोंगी का ढोंग भी मेरे अलावा अन्य कोई प्रकट नहीं कर सकता। इसलिए मैं वहाँ जा कर इसका अभिमान नष्ट करूँ। जैसे एक आकाश में दो सूर्य नहीं हो सकते, एक गुफा में दो सिंह साथ नहीं रह सकते और एक म्यान में दो तलवारें नहीं समा सकतीं, वैसे ही यह भी सर्वज्ञ और मैं भी सर्वज्ञ ऐसा कभी हो नहीं सकता। यह ऐन्द्रजालिक तो विदेश में कला सीख कर आया है और सर्वज्ञ नाम धारण कर लोगों और देवों को भरमाता है, पर मैं तो सब विद्याओं में निपुण हूँ। इतने में भगवान को वन्दन कर समवसरण से कई लोग वहाँ पहुँचे। उनसे इन्द्रभूति ने पूछा कि हे लोगो ! तुम जिसके पास गये थे, वह सर्वज्ञ कैसा है? तब उन्होंने कहा कि उसकी बात बताई नहीं जा सकती, पर तुम स्वयं सर्वज्ञ नाम धारण कर हमसे क्या पूछते हो? वह सर्वज्ञ तो मन की बातें जानता है, पर तुम तो इतना भी नहीं जानते। व्यर्थ सर्वज्ञ कहलाते हो। . यह सुन कर इन्द्रभूति ने जान लिया कि वह माया का घर याने मायावी है, इसलिए सब लोग तो उसे मानने लगे, पर जब मैं वहाँ जाऊँगा, तब तो वह मेरे आगे बोल भी नहीं सकेगा। क्योंकि घरसूरा मठपंडिया, गामगमारां गोठ। भरी सभा में बोलता, थर-थर धूजे होठ।।१।। अपने घर में तो सब कहते हैं कि हम शूरवीर हैं और अपने मठ में सब