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________________ (235) श्री कल्पसूत्र-बालावबोध छोड़ कर जा रहे हैं। इसलिए ये देव मक्खी जैसे हैं।।१।। अथवा करभा इव सवृक्षान्, क्षीरानं शूकरा यथा। अर्कस्यालोकवद् घूका, त्यक्त्वा यागं प्रयान्ति यत्।।२।। जैसे ऊँट भले वृक्षों को छोड़ कर कंटीले वृक्ष के पास जाते हैं, वैसे ही ये देव भी यज्ञ छोड़ कर जा रहे हैं। इसलिए ये ऊँट जैसे हैं। अथवा क्षीरभोजन को छोड़ कर जैसे सूअर विष्टा पसन्द करता है, वैसे ही ये देव भी यज्ञरूप क्षीरभोजन छोड़ कर विष्टाभोजन के समान उस ऐन्द्रजालिक के पास जा रहे हैं। इसलिए ये देव भी सूअर जैसे हैं। अथवा जैसे सूर्यप्रकाश को छोड़ कर उल्लू अंधेरे में जाता है, वैसे ही ये देव भी यज्ञरूप सूर्य को छोड़ कर अन्धकाररूप ऐन्द्रजालिक के पास जा रहे हैं। इसलिए ये उल्लू के समान हैं। . और यह भी एक रीति है कि जो बुरा मनुष्य होता है, वह बुरे के पास जाता है। कहा भी है कि- .. अहवा जारिसो चिय, सो वाणी तारिसा सुरा वेन्ति। अणुसरिसो संजोगो, गामनडाणं च मुक्खाणं।।१।। अथवा जैसा वह ज्ञानी है, वैसे ही ये देव भी हैं। इसलिए इन दोनों का यह समान संयोग हुआ है। जैसे ग्रामनट मूर्ख हैं, वैसे ही गाँव के लोग भी मूर्ख हैं। इन दोनों का समान संयोग मिलता है। वैसे ही ये देव भी जो जा रहे हैं, वे भी मूर्ख हैं और जो वह ज्ञानी है, वह भी मूर्ख है। इसलिए जो जैसा होता है, वह अपने जैसे अन्य के पास जाता है। इस तरह एक समान लोग एक-दूसरे के पास जाते-आते हैं। यही रीति है तथा रे हिल्ली विहिल्ली करेली, म चढीस पायवे निंबे। - अहवा तुज्झ न दोसो, सरिसा सरिसेण रज्जन्ति।।१। करेले की बेल को नीम के पेड़ पर चढ़ते देख कर कोई मनुष्य बोला कि हे करेली ! तू इस नीम के पेड़ पर मत चढ़, क्योंकि तू स्वयं कड़वी है और यह नीम का पेड़ भी कड़वा है। इसलिए अरी पूँडी ! तू और भी अधिक कड़वी हो जायेगी। पर उसकी बात उसने नहीं मानी और उसने नीम
SR No.004498
Book TitleKalpsutra Balavbodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYatindravijay, Jayantsensuri
PublisherRaj Rajendra Prakashan Trust
Publication Year1998
Total Pages484
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_kalpsutra
File Size10 MB
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