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________________ श्री कल्पसूत्र-बालावबोध (233) विष्णुगायत्री और संध्या समय में शिवसरस्वती जपते थे। उनमें से उपाध्यायों के नाम कहते हैं- शंकर, शिवंकर, ईश्वर, महेश्वर, धनेश्वर, सोमेश्वर, शुभंकर, सीमंकर, क्षेमकर, करुणाकर इत्यादिक। जानी के नाम कहते हैं- गंगाधर, गयाधर, विद्याधर, महीधर, श्रीधर, लक्ष्मीधर, धरणीधर, भूधर, दामोदर, वृषोदर इत्यादिक। दुबे के नाम कहते हैं- महादुबे, शिवदुबे, रामदुबे, धामदुबे, कामदुबे, सहदुबे, हरदुबे, वासुदुबे, श्रीदुबे, बलदुबे, धनदुबे, चन्द्रदुबे इत्यादिक। ___ व्यास के नाम कहते हैं- श्रीपति, उमापति, गणपति, प्रजापति, विद्यापति, भूपति, महीपति, लक्ष्मीपति, गंगापति, पृथ्वीपति, देवपति, दानवपति, धनपति इत्यादिक। पंडितों के नाम कहते हैं- नागार्जुन, गोवर्द्धन, गुणवर्द्धन, विष्णु, कृष्ण, मुकुन्द, गोविन्द, आनन्द, परमानन्द, उद्धव, माधव, केशव, पुरुषोत्तम, नरोत्तम इत्यादिक। जोषी के नाम कहते हैं- खिमाइत, भीमाइत, रामाइत, प्रभाइत, गुणाइत, विख्याइत, सोमाइत, धनाइत, कर्माइत, धर्माइत, देवाइत, चन्द्राइत, सूराइत इत्यादिक। त्रिवेदी के नाम कहते हैं- हरिशर्म, अग्निशर्म, महाशर्म, देवशर्म, नरशर्म, सोमशर्म, सूरशर्म, राजशर्म, वासशर्म, गुणशर्म, धर्मशर्म, कर्मशर्म, कुमारशर्म, धनशर्म, जयशर्म, नागशर्म, विष्णुशर्म, शिवशर्म इत्यादिक। ____ चतुर्वेदी के नाम कहते हैं- हरि, हरिहर, नरहरि, नारायण, नीलकंठ, कालकंठ, वैकुंठ, श्रीकंठ, मुरारि, हरिराम, जगन्नाथ, विश्वनाथ, श्रीराम, रामकृष्ण, शुकदेव, वामदेव, चन्द्रदेव, स्वयंभू इत्यादिक। शुक्ल के नाम कहते हैं- कमलाकर, दिवाकर, प्रभाकर, शंकर, यशस्कर, शोभाकर, गुणाकर, रत्नाकर, श्यामदास, रामदास, गोकुलदास, कृष्णदास, देवीदास, हरदास, द्वारिकादास इत्यादिक भिन्न-भिन्न शाखाओं के नाम वाले ब्राह्मण देवलोक के सुख प्राप्त करने के अर्थी होते हुए यागकर्म कर रहे थे। ___ उस अवसर में श्री वीरस्वामी पूर्व सम्मुख बैठे हुए मिथ्यात्व कर्दम दूर करने वाली देशना मेघसमान गंभीर ध्वनि से दे रहे थे। उसे सुनने के लिए वैमानिकदेव आकाश में देवदुंदुभी बजाते हुए आ रहे थे। उस दुंदुभी का नाद सुन कर सब ब्राह्मण हर्षित हो कर सोचने लगे कि हमारे यज्ञमंत्र इतने प्रभावक हैं कि इन मंत्रों का उच्चारण करते ही देव भी आ गये। इतने में
SR No.004498
Book TitleKalpsutra Balavbodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYatindravijay, Jayantsensuri
PublisherRaj Rajendra Prakashan Trust
Publication Year1998
Total Pages484
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_kalpsutra
File Size10 MB
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