________________ (232) श्री कल्पसूत्र-बालावबोध में जीव और कर्म भिन्न हैं या एक हैं, यह सन्देह था। ये तीनों सन्देह वाले तीनों सहोदर याने सगे भाई थे। इनका गौतम गोत्र था। ____चौथे व्यक्त के मन में पंचभूत के विषय में सन्देह था। पाँचवें सुधर्म के मन में यह सन्देह था कि जो जैसा होता है, वह मरने के बाद पुनः वैसा ही होता है। याने कि स्त्री मर कर दूसरे भव में भी स्त्री ही होती है और पुरुष मर कर पुरुष ही होता है। क्या यह सच है? छठे मंडित के मन में बन्ध और मोक्ष वास्तव में है या नहीं? यह सन्देह था। सातवें मौर्यपुत्र के मन में देवों के अस्तित्व के विषय में सन्देह था। आठवें अकंपित के मन में नरक के अस्तित्व के विषय में सन्देह था। नौवें अचलभ्राता के मन में यह सन्देह.था कि पाप और पुण्य वास्तव में हैं या नहीं? दसवें मेतार्य के मन में परलोक है या नहीं? यह सन्देह था और ग्यारहवें प्रभास के मन में मोक्ष के अस्तित्व के विषय में सन्देह था। . __इन ग्यारहों के मन में वेद का अर्थ विपरीत ग्रहण करने के कारण सन्देह रह गये थे। स्वयं के पास पंडिताई का बल अधिक होने के कारण अभिमान से दूसरे की बात वे चलने नहीं देते थे। इन ग्यारहों के पास जो छात्र पढ़ते थे, उनकी संख्या कहते हैं पंचण्हं पंचसया, अद्भुट्ठसयाई हुंति दुन्निगणा। . दुन्नं तु जुअल सयाणं, तिसओ तिसओ हवइ गच्छो।।१।। पहले पाँच पंडितों के पास पाँच पाँच सौ छात्र पढ़ते थे। उन पाँचों के पच्चीस सौ छात्र हुए। छठे और सातवें के पास साढ़े तीन सौ साढ़े तीन सौ छात्र पढ़ते थे। इन दोनों के मिल कर सात सौ हुए। आठवाँ और नौवाँ यह प्रथम युगल और दसवाँ और ग्यारहवाँ यह दूसरा युगल मिल कर चार जनों के पास तीन सौ-तीन सौ छात्र पढ़ते थे। इन चारों के मिल कर बारह सौ छात्र हुए। इस प्रकार कुल ग्यारहों के मिल कर 4400 छात्रों का समुदाय हुआ। याने कि ग्यारहों पंडितों के चवालीस सौ विद्यार्थी थे। इस प्रकार वहाँ यज्ञ में अनेक विप्र इकट्ठे हुए थे। वे सब यजन, जापन, अध्ययन, अध्यापन, दान और प्रतिग्रह ये षट्कर्म साधते थे। वे प्रभात में ब्रह्मगायत्री, मध्याह्न में