SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 264
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्री कल्पसूत्र-बालावबोध (231) जानना। अन्यथा तीर्थंकर के तो केवलज्ञानरूप उद्योत सदा सर्वदा विद्यमान है तथा प्रभु देवरचित कनक कमल पर चरण रख कर चलते हैं, इसलिए उनका चलना सदा रात-दिन एक समान ही है। पर भगवान का दृष्टान्त दे कर जो साधु रात में विहार करते हैं, उन्हें सुखशीलिये, तीर्थंकर की आज्ञा बाहर और चारित्र से भ्रष्ट जानना। गणधरादिक संघस्थापना 1. श्री गौतम गणधर जब वीर प्रभु मध्यमा पावापुरी में पधारे, तब देवों ने विशेष समवसरण की रचना की। वहाँ भगवान ने पूर्व के द्वार से प्रवेश कर, अशोकवृक्ष को तीन प्रदक्षिणा दे कर, सिंहासन पर बैठ कर 'नमो तित्थस्स' कह कर धर्मोपदेश दिया। तीर्थ ऐसा सूत्र का नाम है। उसे नमस्कार किया, सो मंगलाचार बताने के लिए जानना। इसी समय में वहाँ एक यज्ञार्थी सोमिल नामक ब्राह्मण यज्ञ याने होम करा रहा था। उसमें अनेक ब्राह्मण सम्मिलित हुए थे। अपापायां महापुर्यां, यज्ञार्थी सोमिलो द्विजः। तदाहृताः समाजग्मु-रेकादशद्विजोत्तमाः।।१।। अपापा महानगरी में रहने वाले सोमिल ब्राह्मण ने यज्ञ करने के लिए ग्यारह बड़े ब्राह्मण पंडितों को आमंत्रित किया था। उनके नाम कहते हैं- 1. इन्द्रभूति, 2. अग्निभूति, 3. वायुभूति, 4. व्यक्त, 5. सुधर्म, 6. मंडित, 7. मौर्यपुत्र, 8. अकंपित, 9. अचलभ्राता, 10. मेतार्य और 11. प्रभास। ये ग्यारहों पंडित चौदह विद्याओं के जानकार, वेदपाठी और महाअभिमानी होने से ऐसा मानते थे कि संसार में उनके जैसा कोई पंडित नहीं है। इसी प्रकार लोग जिसे सर्वज्ञ कहते हैं, वह हम ही हैं। - उन ग्यारहों के मन में ग्यारह भिन्न भिन्न सन्देह थे। वे इस प्रकार हैंपहले इन्द्रभूति के मन में यह सन्देह था कि जीव है या नहीं? दूसरे अग्निभूति के मन में कर्म के विषय में सन्देह था। तीसरे वायुभूति के मन
SR No.004498
Book TitleKalpsutra Balavbodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYatindravijay, Jayantsensuri
PublisherRaj Rajendra Prakashan Trust
Publication Year1998
Total Pages484
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_kalpsutra
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy