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________________ (222) श्री कल्पसूत्र-बालावबोध आहार नहीं लेते, इसलिए मुझे धिक्कार है। फिर भगवान ने उसे रुदन करते देख कर अपना अभिग्रह सम्पूर्ण हुआ जान कर उड़द बाकुले हाथ में लिये। वहाँ देवों ने पंचदिव्य प्रकट किये। उसी समय बेड़ियाँ टूट गयीं और नूपुर बन गये तथा मस्तक पर वेणी बन कर तैयार हो गयी। वहाँ इन्द्र महाराज का आगमन हुआ। चन्दना की माता की बहन मृगावती चन्दना की मौसी होती थी। उस संबंध से शतानीक राजा धन लेने आया। तब इन्द्र ने उसे रोका और कहा कि यह धन चन्दना की दीक्षा के समय काम आयेगा। चन्दना ने कहा कि यह धन सेठ को दे दीजिये। सेठ को वह धन सौंप कर इन्द्र ने कहा कि यह चन्दना भगवान की प्रथम साध्वी बनेगी। यह कह कर इन्द्र महाराज अपने स्थान पर चले गये। यहाँ पाँच दिन कम छहमासिक तप का प्रभु का पारणा हुआ।' गोपालककृत कर्णकीलोपसर्ग . फिर भगवान षड्जूंभिका गाँव में काउस्सग्ग में रहे। उस समय इन्द्र महाराज वन्दन करने आये। वन्दन करने के बाद वे यह कह कर चले गये कि हे भगवन् ! आपको इतने दिन बाद अमुक दिन केवलज्ञाम उत्पन्न होगा। फिर प्रभु विचरते हुए चंपानगरी आये। वहाँ स्वातिदत्त ब्राह्मण की शाला में बारहवाँ चातुर्मास किया।।१२।। वहाँ से पारणा कर भगवान विचरते हुए षण्मानिक गाँव के बाहर उद्यान में काउस्सग्ग में स्थित रहे। उस अवसर पर एक ग्वाले ने भगवान के कानों में खीले ठोंके। उस उपसर्ग का वर्णन करते हैं- प्रभु ने त्रिपृष्ठ वासुदेव के भव में शय्यापालक के कान में सीसा गरम कर के उँडेलवाया 1. किसी-किसी प्रत में ऐसा भी लिखा है कि अपने घर वसुधारा की वर्षा हुई, यह जान कर मूला अपने पीहर से वहाँ दौड़ी आयी। उसने उतावल से धन अपनी झोली में भरना शुरु किया, पर धन हाथ में लेते ही अग्निज्वाला भड़क उठी। इससे उसके सब वस्त्र जल गये। फिर वह श्यामवदन हो कर वहाँ से चली गयी। देव ने उसकी तर्जना करके कहा कि यह धन चन्दनबाला का है। चन्दना ने वह धन सेठ को सौंप दिया। सेठ ने वह सब धन उसके दीक्षा महोत्सव में खर्च किया।
SR No.004498
Book TitleKalpsutra Balavbodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYatindravijay, Jayantsensuri
PublisherRaj Rajendra Prakashan Trust
Publication Year1998
Total Pages484
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_kalpsutra
File Size10 MB
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