________________ -- श्री कल्पसूत्र-बालावबोध (203) सफेद खून निकला। इसलिए यह तो कोई महापुरुष लगता है। यह सोच कर उसने भगवान के मुख की ओर देखा। तब भगवान बोले कि अरे चंडकौशिक ! बूझ बूझ। क्या तू नहीं जानता? यह सुन कर साँप को लगा कि ऐसा रूप मैंने कहीं देखा है। इतने में उसे मूर्छा आ गयी और जातिस्मरण ज्ञान उत्पन्न हुआ। उसने अपना पिछला भव देखा। फिर प्रभु को तीन प्रदक्षिणा दे कर कहा कि हे करुणासागर ! दुर्गतिरूप कुएँ से आपने मेरा उद्धार कर दिया। ___फिर वैराग्य प्राप्त कर पन्द्रह दिन का अनशन कर परोपकारार्थ वह सर्प अपना मुख बिल में रख कर और शेष शरीर बाहर रख कर पड़ा रहा। उस मार्ग से दूध-दही-घी बेचने के लिए जाने वाली अहीरनों ने नागराज को सन्तुष्ट हुआ जान कर दूध-दही-घी-शर्करादिक से उसकी पूजा की। इन पदार्थों की गंध से उसके शरीर पर कीड़ियाँ लग गयीं। तब उसने सोचा कि यदि मैं मेरा शरीर हिलाऊँगा, तो कीड़ियाँ मर जायेंगी। यह जान कर उसने अपना शरीर नहीं हिलाया। कीड़ियों ने उस साँप को काट काट कर छलनी जैसा बना दिया। अन्त में वह साँप शुभ ध्यान में मर कर आठवें देवलोक में देव बना। भगवान ने वहाँ से आगे विहार कर उत्तरवाचाल सन्निवेश में पहुँच कर नागसेन श्रावक के घर परमान्न से पारणा किया। वहाँ देवों ने पंचदिव्य प्रकट किये। प्रभु को सुदंष्ट्र देव का उपसर्ग वहाँ से विहार कर भगवान श्वेतांबिका नगरी पहुँचे। वहाँ परेदशी राजा ने प्रभु की महिमा की। वहाँ से विचरते हुए भगवान सुरभिपुर की ओर बढ़े। मार्ग में गंगा नदी आयी। उसे पार करने के लिए बहुत से लोग सिद्धदत्त खलासी की नाव पर चढ़े। उनके साथ प्रभ भी बैठ गये। इतने में उल्लू बोला। उसका शकुन देख कर सोमिल नामक निमित्तज्ञ बोला कि हे लोगो ! आज हम सबको मरणान्त कष्ट होगा, पर इन साधु महात्मा पुरुष के प्रभाव से हम जीवित रहेंगे-मरेंगे नहीं।