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________________ (204) श्री कल्पसूत्र-बालावबोध इतने में भगवान ने त्रिपृष्ठ वासुदेव के भव में जिस सिंह का विदारण किया था, वह सिंह अनेक भवभ्रमण कर भवनपति देवों में सुदंष्ट्र नामक नागकुमार देव हुआ। उसने अवधिज्ञान से प्रभु को देखा और पूर्व वैर का स्मरण कर वह वहाँ आ कर नाव डुबोने का उपद्रव करने लगा। उस समय नये उत्पन्न हुए कंबल और संबल नामक दो नागकुमार देवों ने वहाँ आ कर एक ने नाव को डूबने से बचाया और दूसरे ने सुदंष्ट्र के साथ लड़ाई की। सुदंष्ट्र हार गया और भगवान सुखपूर्वक गंगा नदी पार हुये। . . कंबल-संबल का पूर्वभव मथुरा नगरी में जिनदास नामक श्रावक रहता था। उसकी साधुदासी नामक स्त्री भी श्राविका थी। उन दोनों ने पाँचवें अणुव्रत में चतुष्पद जीवों को रखने का त्याग किया था। दूध-दही आदि वे एक अहीर से मोल लेते थे। इस कारण अहीर और सेठ में आपसी प्रेम था। उस अहीर के साथ लेन-देन की छूट संतोष व्रत में रखी हुई थी। एक बार अहीर के घर विवाह था। उसने सेठ से विवाह के लिए कुछ सामान माँगा। सेठ ने भी चन्द्रवाप्रमुख सब उपकरण उसे दिये। इससे,उसके यहाँ विवाह .. बहुत श्रीकार हुआ। तब वह अहीर खुश हो कर समान वय के दो सुन्दर बछड़े सेठ के यहाँ उनके ना कहने पर भी बाँध गया। यद्यपि सेठ की इच्छा बछड़े रखने की नहीं थी, पर फिर उसने सोचा कि यदि मैं इन्हें लौटा दूंगा, तो ये बेचारे कहीं बेचे जाएँगे और दुःखी होंगे। ये बंधे रहेंगे और भार ढोयेंगे। यह सोच कर उसने उन्हें अपने घर में रख लिया। उन्हें पुत्र के समान घास, प्रासुक जलप्रमुख खिला कर उन्हें पाला-पोसा। उनके नाम कंबल और संबल रखे। सेठ हर पक्खी के दिन पौषध करते थे, धर्मचर्चा करते थे और शास्त्र पढ़ते थे। धर्म की बातें सुन सुन कर वे बैल भी बहुत समझदार हो गये। वे ऐसे भद्रपरिणामी हुए कि जिस दिन सेठ उपवास करते, उस दिन वे भी उपवास करते और घास-चारा बिल्कुल नहीं खाते। इस प्रकार शुभ भावनायुक्त वे रहने लगे। ___ एक बार सेठ का एक मित्र उस पुष्ट वृषभयुगल को देख कर सेठ को पूछे बिना उठा ले गया। सेठ उस समय पौषध में थे, इसलिए कुछ न बोल सके। वह मित्र उन बैलों को रथ में जोड़ कर भंडीरवन में किसी यक्ष की यात्रा में ले गया। मार्ग में उन्हें बहुत दौड़ाया। इससे उनकी नाड़ियाँ टूट गयीं। फिर वह चुपचाप उन्हें
SR No.004498
Book TitleKalpsutra Balavbodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYatindravijay, Jayantsensuri
PublisherRaj Rajendra Prakashan Trust
Publication Year1998
Total Pages484
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_kalpsutra
File Size10 MB
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