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________________ (201) श्री कल्पसूत्र-बालावबोध दूर हो गया और वे जीवनभर के लिए सुखी हो गये। चंडकौशिक नाग का उपसर्ग और उसे प्रतिबोध उस दिन से भगवान अचेलक हुए। अन्य तेईस तीर्थंकरों के देवदूष्य वस्त्र जीवन भर रहे थे। कई प्रतों में मध्य के बाईस तीर्थंकरों के देवदूष्य यावज्जीव रहे, ऐसा लिखा है। इससे उन्हें सचेलक समझना। अब श्री महावीरस्वामी ने बारह वर्ष साढ़े छह महीने छद्मस्थ अवस्था में रहते हुए काया को वोसिरा दिया। किसी भी प्रकार की शुश्रूषा किये बिना वे विचरते रहे। इस काल में देवों, मनुष्यों और तिर्यंचों द्वारा अनुलोम और प्रतिलोम उपसर्ग किये गये। नाटक दिखाना, आलिंगन देना इत्यादि देवों द्वारा किये गये उपसर्ग सब अनुलोम उपसर्ग जानना तथा देवादिकों ने भय बताये, प्रहार किये, मारा-कूटा इत्यादिक सब प्रतिलोम उपसर्ग जानना। ये दोनों प्रकार के सब उपसर्ग भगवान ने अपनी खुशी से सहन किये, पर चारित्र से वे जरा भी चलायमान नहीं हुए। इसी प्रकार उन्होंने किसी पर राग-द्वेष भी नहीं किया। किसी से दीन वचन भी नहीं कहा। वे किसी से भयभीत भी नहीं हुए। इस प्रकार उन्होंने अनेक उपसर्ग सहन किये। _____एक बार उत्तरवाचाल सन्निवेश में जाते समय भगवान मार्ग में वर्द्धमान गाँव पहुँचे। वहाँ से सुवर्णवालुका और रौप्यवालुका ये दो नदियाँ पार कर आगे बढ़े। आगे दो मार्ग थे। एक वक्रमार्ग और दूसरा सरल मार्ग। उन्हें लोगों ने बताया कि सरल मार्ग में सर्प का भय है, इसलिए आप उस रास्ते न जायें। पर भगवान उस साँप को प्रतिबोध देने के लिए वक्र मार्ग छोड़ कर सरल मार्ग में आगे बढ़े। उस मार्ग में कनकखल वन में एक तापस का आश्रम था। वहाँ एक महाबलवान बहुत डंकीला चंडकौशिक साँप रहता था। चंडकौशिक नाग की कथा किसी गाँव में दो साधु गुरु-शिष्य चातुर्मास में ठहरे थे। एक दिन मासखमण के पारणे के लिए वे दोनों गोचरी गये। उस समय वर्षा ऋतु के कारण अनेक जीवों
SR No.004498
Book TitleKalpsutra Balavbodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYatindravijay, Jayantsensuri
PublisherRaj Rajendra Prakashan Trust
Publication Year1998
Total Pages484
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_kalpsutra
File Size10 MB
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