________________ (200) श्री कल्पसूत्र-बालावबोध लाखमोली हो जायेगा। फिर तुम्हारा और मेरा दोनों का दारिद्र्य नष्ट हो जायेगा। तब वह ब्राह्मण लोभवश पुनः श्रीवर्द्धमान स्वामी के पास पहुँचा, पर वह मन में सोचने लगा कि मैं बार-बार याचना कैसे करूँ? अति लोभ करना मनुष्य के लिए उचित नहीं है। फिर भगवान भी ऐसा जानेंगे कि यह ब्राह्मण लोभी है। यह सोच कर वह मौन रहा। उसने मुख से नहीं माँगा। कारण लज्जा वारेइ मुहं, असंपया भणइ मागि रे मग्ग दिन्नं मानकवाडं, देहि ति मग्गिया वाणी।।१।। लज्जा मुख को रोकने लगी, पर असंपदा (दरिद्रता) ने कहा कि माँग रे माँग। पर मानरूप किंवाड़ लगा दिये गये, इसलिए 'आपो' याने दीजिये, ऐसे शब्द मुख से नहीं निकले। उसने सोचा कि जब यह वस्त्र कंधे से गिर पड़ेगा, तब उठा लूँगा। फिर भगवान के दीक्षा लेने के बाद एक वर्ष और एक महीना होने तक वह उनके पीछे पीछे घूमता रहा। एक दिन वह देवदूष्य तेज हवा के झोंके से उड़ कर उत्तरवाचाला गाँव के पास सुवर्ण-वालुका नदी के किनारे बेरवृक्ष के काँटों में उलझ गया। उसे ले कर वह ब्राह्मण चला गया। भगवान ने भी सिंहावलोकन दृष्टि से देखा। वस्त्र काँटों में उलझा, इससे भगवान ने जान लिया कि मेरे बाद जो स्वसन्तानिक साधु होंगे, वे सब बहुलकषायी, कंटकी, कलहकारी और प्रायः असमाधिकारक होंगे। मुंडे बहुत होंगे, और साधु कम होंगे। अब वह विप्र अपनी आत्मा को धन्य कृतार्थ मानते हुए और सम्पूर्ण मनोरथवान होते हुए बुनकर (जुलाहे) के पास गया। फिर उसके दोनों खंड जुड़वा कर उसे बेच दिया। उसे एक लाख सुवर्णमुद्राएँ मिलीं। उनमें से आधी जुलाहे को दी और आधी स्वयं ने रखीं। इस प्रकार दोनों का दारिद्र्य 1. यहाँ कोई कहते हैं कि ममत्व से देखा। कोई कहते हैं कि शुभ स्थान में पड़ा.या अशुभ स्थान में? यह जानने के लिए देखा। कोई कहते हैं कि सहसात्कार से देखा और कोई कहते हैं कि मेरे बाद मेरे शिष्यों को वस्त्र-पात्र सुलभता से मिलेंगे या नहीं? यह जानने के लिए देखा।