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________________ (182) श्री कल्पसूत्र-बालावबोध थे। जब पालकी चलने लगी, तब सब देव-देवियाँ और नर-नारी अपनीअपनी खुशी से मन के अनुसार हर्ष के बाजे बजाने लगे, नाच-गान करने लगे और फल-फूल-मोती प्रमुख बरसाने लगे। जुलूस में भगवान के आगे अनुक्रम से सबसे पहले आठ मंगल, फिर भुंगारकलश (पूर्ण कलश), विशाल वैजयंती ध्वजा, छत्रधर, मणिपीठ (सिंहासन), सवाररहित सजाये हुए एक सौ आठ हाथी, एक सौ आठ घोड़े, एक सौ आठ शस्त्रपूरित रथ, एक सौ आठ पुरुष, अश्वदल, हस्तिदल, रथदल, पैदल लश्कर (चार प्रकार की सेना), एक हजार योजन ऊँचा और छोटी छोटी एक हजार ध्वजाओं से मंडित महेन्द्रध्वज, कुन्तग्रहा, बाणग्रहा, तीरग्रहा, गोफणग्रहा, हास्यकारिका, कर्मकारिका, वशकारिका, ज्ञानकारिका, विनोदकारिका, खड्गधर, धनुर्धर आदि एक के पीछे एक चलते थे। उनके पीछे तख्ती रखने वाले और अनेक चारण भिखारी याचना करते हुए चलते थे। उनके पीछे अनेक उग्र-भोगादिक कुलवाले क्षत्रिय, मांडविक, कौटुंबिक, सेठ, सेनापति, सार्थवाह, देव-देवियाँ और प्रजाजन चलते थे। भगवान के पीछे सेनासहित, अनेक आंडबरसहित छत्र-चामर धारण किये हुए नन्दीवर्द्धन राजा चल रहे थे तथा अन्य भी अनेक लोग चल रहे थे। उस समय अनेक प्रकार के बाजे बज रहे थे। उनकी ध्वनि सुन कर नगर की स्त्रियाँ अपनाअपना काम छोड़ कर वहाँ पहुँच गयीं। वे कैसे पहुँची? सो कहते हैं__ तीन बातें स्त्रियों को प्रिय हैं- एक झगड़ा, दूसरा काजल और तीसरा सिन्दूर। इसी प्रकार अन्य तीन भी उन्हें प्रिय हैं- एक दूध, दूसरा दामाद और तीसरा तूर याने बाजा। कहा भी है कि तिण्णि वि तियां वल्लहा, कलि कज्जल सिन्दूर। ए पुण अतिहि वल्लहा, दूध जमाई तूर।।१।। इसलिए वे स्त्रियाँ बाजों की ध्वनि सुन कर वहाँ उतावली पहुँची। इस कारण से किसी स्त्री ने काजल आँखों के बदले गालों पर लगा लिया और कस्तूरी गालों के बदले आँखों में लगा ली। किसी स्त्री ने झन झन करते झांझर पैरों के बदले गले में पहन लिये। कई स्त्रियों ने गले के गहने पैरों
SR No.004498
Book TitleKalpsutra Balavbodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYatindravijay, Jayantsensuri
PublisherRaj Rajendra Prakashan Trust
Publication Year1998
Total Pages484
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_kalpsutra
File Size10 MB
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