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________________ * श्री कल्पसूत्र-बालावबोध (181) धनुष्य चौड़ी और छत्तीस धनुष्य ऊँची मणिकनकरचित चन्द्रप्रभा पालकी बनायी। देवों ने भी ऐसी ही एक पालकी बनायी। देवनिर्मित पालकी दिव्यानुभाव से नन्दीवर्द्धनकृत पालकी में समा गयी। फिर वह पालकी प्रभु के सम्मुख रखी गयी। उस पालकी में भगवान पूर्व सम्मुख सिंहासन पर बैठे। भगवान की दाहिनी ओर कुल में वरिष्ठ कुलमहत्तरिका हंसलक्षणा स्त्री साड़ी ले कर बैठी तथा बायीं ओर भगवान की धायमाता दीक्षा के उपकरण ले कर बैठी। भगवान के पीछे एक स्वरूपवती भली स्त्री सोलह श्रृंगार कर के छत्र ले कर बैठी। ईशानकोण में एक स्त्री हाथ में जलपूर्ण कलश ले कर खड़ी रही तथा अग्निकोण में एक स्त्री मणिमय विचित्र पंखा झलती खड़ी रही। ये सब स्त्रियाँ श्रृंगार की हुई युवतियाँ थीं। . फिर नन्दीवर्द्धन राजा की आज्ञा से एक हजार सेवकों ने पालकी उठायी। उसी समय,शक्रेन्द्र ने पालकी की दाहिनी ओर की अगली ऊपर की ओर की बाँह उठायी तथा ईशानेन्द्र ने बायीं ओर की अगली ऊपर की बाँह उठायी। इसी प्रकार चमरेन्द्र ने दाहिनी ओर की पिछली तरफ की बाँह उठायी तथा बलीन्द्र ने बायीं ओर की पिछली तरफ की बाँह उठायी। अन्य भवनपति, व्यन्तर, ज्योतिषी और वैमानिक देवों के इन्द्रों ने जहाँ नजर गयी, वहाँ से उठायी। उस समय कई देव दुंदुभी बजाने लगे और कई पंचवर्ण पुष्यों की बरसात करने लगे। शक्रेन्द्र और ईशानेन्द्र जब बाँह छोड़ कर चामर बींझते, तब अन्य इन्द्र शिबिका उठाते। इस शिबिका को पहले मनुष्यों ने उठाया। फिर सुरेन्द्र, असुरेन्द्र और नागेन्द्र ने उठाया। अन्य सब देव हर्षित हो कर आकाश में नृत्यादिक करने लगे। जैसे वनखंड फूलों से तथा शरद ऋतु में पद्मसरोवर कमलों से सुशोभित होते हैं, वैसे ही आकाश में रहे हुए देवगण शोभायमान हो रहे थे। जैसे अलसीवन, कनेरवन और चंपावन फूलों से संकीर्ण हो जाते हैं, वैसे ही क्षत्रियकुंड नगर से देवभवन तक आकाश देव-देवियों से संकीर्ण हो गया। प्रधान पटह, भेरी, झल्लरी, दुदुंभी इत्यादिक करोड़ों बाजे आकाश में तथा धरती पर बज रहे थे। यह सब देखने के लिए अपने घर के काम छोड़ कर सब लोग इकट्ठे हो गये
SR No.004498
Book TitleKalpsutra Balavbodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYatindravijay, Jayantsensuri
PublisherRaj Rajendra Prakashan Trust
Publication Year1998
Total Pages484
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_kalpsutra
File Size10 MB
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