________________ (180) श्री कल्पसूत्र-बालावबोध रोग मिट जाता है तथा पुनः बारह वर्ष तक उसके शरीर में कोई नया रोग नहीं होता। यह सब दान की महिमा जानना। छह घड़ी दिन चढ़ने के बाद भगवान दान देना शुरु करते हैं। उसके बाद पौने दो प्रहर तक दान देते हैं, ऐसा अनेक प्रतों में लिखा है। परन्तु यहाँ सूर्योदय से भोजन के समय तक दान देते हैं, ऐसा पूर्व में लेख है। इस प्रकार भगवान ने वार्षिकदानरूप बरसात एक वर्ष तक बरसा कर मनुष्यों का दारिद्र्यरूप दावानल शान्त किया। इस दान के प्रभाव से जो दरिद्री थे, वे सब धनवान हुए। अश्व, वस्त्र, आभरण आदि से उनकी वृद्धि हुई और वे लक्ष्मीसहित हुए। भगवान के हाथ का दान ले कर जब वे घर लौटते थे, तब उनकी स्त्रियाँ उन्हें पहचान तक नहीं सकती थी। फिर इन्द्र महाराज आ कर पहचान करवाते, तब वे पहचान पातीं। भगवान के हाथ का यह दान सब भव्य जीवों को मिलता है, पर अभव्य को सर्वथा नहीं मिलता। भगवान का दीक्षा महोत्सव भगवान का दीक्षा समय जान कर नन्दीवर्द्धन राजा ने दीक्षा महोत्सव करने के लिए क्षत्रियकुंड नगर में ध्वजाएँ बँधवायीं, बाजार सजवाये और घर-घर तोरण बँधवाये। फिर आठ जाति के अभिषेक कलश बनवाये। चौसठ इन्द्रों के आठ जाति के अभिषेक कलश देवप्रभाव से उन कलशों में प्रविष्ट हो गये। फिर नंदीवर्द्धन राजा ने भगवान को पूर्व सम्मुख बिठा कर देवों द्वारा लाये गये जल से उनका अभिषेक करवाया। उस समय इन्द्रादिक सब देव हाथ में भंगार दर्पण ले कर जय-जय शब्दों का उच्चारण करते हुए वहाँ खड़े रहे। फिर भगवान के शरीर को पोंछकर उस पर बावनाचन्दन का लेप किया और भगवान को अमूल्य वस्त्र, मुकुट, मुक्ताहार, कंठसूत्र, केयूर, बाजुबंध, बहिरखे और कुंडलादिक आभूषण पहनाये तथा पुष्पादिक से भगवान को कल्पवृक्ष जैसा किया। नन्दीवर्द्धन के आदेश से अनेक सेवकों ने पचास धनुष्य लम्बी, पच्चीस