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________________ श्री कल्पसूत्र-बालावबोध (183) में डाल दिये। कई स्त्रियों ने कटिमेखला गले में डाल दी और गले का हार कटिमेखला के स्थान पर कमर में बाँध दिया। कई स्त्रियों ने चन्दन घिस कर पैरों में चुपड़ लिया और अलता मस्तक पर चुपड़ लिया। कई स्त्रियाँ अधुरा स्नान कर के भागती गयीं। कोई-कोई घाघरा ओढ़ कर चली गयी। कोई-कोई अन्य स्त्रियों के पुत्रों को अपनी बगल में उठा कर भागती गयी, कई स्त्रियाँ अपने रोते हुए बालक को छोड़ कर देखने गयीं। कई स्त्रियों ने अपना वस्त्र खींच कर नहीं बाँधा, इसलिए वह हवा के कारण उड़ गया। इससे नववधुएँ बालकुमारी जैसी दीखने लगीं, किसी स्त्री ने एक कान में आभूषण पहना और दूसरे कान में पहनना भूल गयी, कोई स्त्री जीम कर चलु करना भूल गयी, किसी स्त्री ने एक पैर धोया और दूसरा धोना रह गया। कोई कंचुली पहनना भूल गयी। ऐसी उतावल से सब देखने निकल पड़ीं। वहाँ कई स्त्रियाँ चावल उछाल रही थीं और कई नाच-गान कर रही थीं। ऐसे ठाट-बाट से भगवान का दीक्षा महोत्सव मनाया गया। वह किस दिन मनाया गया? सो कहते हैं उस काल में उस समय में श्रमण भगवन्त श्री महावीरस्वामी हेमन्तऋतु याने जाड़े की ऋतु का पहला महीना पहला पक्ष मार्गशीर्ष वदि दशमी, सुव्रत नामक दिन की पिछली छाया में याने एक प्रहर दिन बीतने पर विजय मुहूर्त में चन्द्रप्रभा पालकी में बैठे। उनके आगे-पीछे देव और मनुष्य चल रहे थे। शंखवादक, सुवर्णचक्र धारक, हलधर तथा मंगल शब्द बोलने वाले भिक्षुक प्रमुख, चारणप्रमुख और भाटप्रमुख तथा घंटानाद करने वालों का समुदाय आशीर्वाद देते हुए कह रहा था कि___ हे समृद्धिवन्त ! आपकी जय हो, विजय हो। हे कल्याणवन्त आपका कल्याण हो। आपके ज्ञान, दर्शन और चारित्र अतिचार रहित हों। उनका भंग न हो। जो जीती नहीं जा सकती अर्थात् जिन्हें जीतना बहुत कठिन है, ऐसी इन्द्रियों को आप जीतें और साधुधर्म का पालन करें। आप सर्व विघ्नरहित हों। उग्रविहार करने में आपका नाम हो। राग-द्वेष रूप दो मल्लों का आप नाश करें तथा तपरूप धैर्य धारण कर संतोषरूप लंगोट कस कर
SR No.004498
Book TitleKalpsutra Balavbodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYatindravijay, Jayantsensuri
PublisherRaj Rajendra Prakashan Trust
Publication Year1998
Total Pages484
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_kalpsutra
File Size10 MB
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