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________________ (166) श्री कल्पसूत्र-बालावबोध लालयेत् पञ्चवर्षाणि, दशवर्षाणि ताडयेत्। प्राप्ते षोडशके वर्षे, पुत्रं मित्रवदाचरेत्।।१।। माता वैरी पिता शत्रः, पुत्रो येन न पाठितः। शोभते न सभामध्ये, हंसमध्ये बको यथा।।२।। वर्धमान जब वर्ष अष्ट की आयु को पर्याप्त थे, मोहवश हो पिता माता फिक्र में परिव्याप्त थे। बिना शिक्षा श्रेय नाही जगत में रीति यही, अतः अब इन प्रिय कुमर को विद्वान करना सही।।१।। नीतिशास्त्र में कथन सच्चा वर्ष पंच पर्यन्त है. लाड़ गोड़ की सीम दाखी फिर पढ़ने में तन्त है। पिता माता निज तनुज को, अशिक्षित रखते कहीं; शत्रुसदृश वे कहाते, मूर्ख का आदर नहीं।। 2 / / इसी कारण पाठशाला, भेज कर पंडित कने; सर्व विद्या अरु कलाएँ, सिखाना जहाँ तक बने। बुला पंडित ज्योतिषी को, शुभ लग्न दिखवा लिया; विविध बाजा साज संयुत, भूपने उत्सव किया।।३।। गोल-धानी द्राख श्रीफल, सींगोडा खारक चणा; टोपरा साकर चारोली, बर्फी पेड़ा अति घणा। फल-फूल एलची पाक-पिस्ता मखाणा मोदक लिये; खजूर दाडिम सेव ताजी, थाल भर भेले किये।।४।। सर्व मेवे विविध वस्तु, साथ ले कर कर धरे; पाठशाला में ले जा कर, छात्रों को वितरण करे। सोने के खडिये पाटिये, फिर कीमती चान्दी तनी; रत्नजड़ित की लेखनी ले, जो थी सोने की बनी।।५।। तम्बोल ताजे बना बीड़े, कस्तूरी केसर छाँटने; पूर्वोक्त वस्तु कीध संग्रह, विद्यार्थियों को बाँटने। आगे अध्यापक योग्य भूषण, वस्त्र नाना जाति के स्वर्णनिर्मित कडा कंठी, मुद्रड़ी बहुभाँति के।।६।। पालकी रथ अश्व हस्ति, सर्व किंकर साथ थे; भट्ट चारण बिरुद बोले, प्रभु त्रिलोकीनाथ थे।
SR No.004498
Book TitleKalpsutra Balavbodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYatindravijay, Jayantsensuri
PublisherRaj Rajendra Prakashan Trust
Publication Year1998
Total Pages484
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_kalpsutra
File Size10 MB
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