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________________ श्री कल्पसूत्र-बालावबोध (165) वे बिल्कुल नहीं डरेंगे। ऐसे वे निडर हैं। तब इन्द्र महाराज के वचन पर विश्वास न करते हुए कोई एक मिथ्यात्वी देव वहाँ से उठ कर जहाँ भगवान खेल रहे थे, वहाँ जा पहुँचा। फिर वह बालक का रूप बना कर भगवान के साथ खेलने लगा। तब भगवान ने अत्यन्त वेग से दौड़ कर तुरन्त जा कर पीपल के पेड़ को छू लिया और वे आगे बढ़ गये। देव ने पीपल की निचली डालियों में सर्वत्र फूत्कार करने वाले सर्प का रूप बनाया। फिर वह भगवान के सामने फन फैला कर उन्हें डराने लगा। पर भगवान उस सर्प को अपने हाथ से दूर कर स्वयं पीपल पर चढ़ गये। वे उस सर्प से बिल्कुल नहीं डरे। ____ जब वह देवकृत बालक हार गया और श्री वर्द्धमान जीत गये, तब उस देवरूप बालक ने अपने कंधे पर भगवान को बिठाया। फिर उन्हें डराने के लिए उसने सात ताड़वृक्ष जितना ऊँचा रूप बनाया। उसे देख कर अन्य सब बालक डर कर भाग गये। उन्होंने भगवान के माता-पिता से सब वृत्तान्त कहा। माता-पिता चिन्ता करने लगे। उनकी चिन्ता दूर करने के लिए भगवान ने अपनी मुट्ठी से देव की पीठ पर वज्रप्रहार किया। इससे वह देव अरराट करते हुए और चीखते हुए जमीन पर गिर गया। फिर अत्यन्त लज्जित हो कर अपना रूप प्रकट कर उसने कहा कि हे प्रभो ! इन्द्र महाराज ने जैसा आपका बखान किया था, आप वैसे ही धैर्यवान महाबलवान हैं। उस समय इन्द्र महाराज भी स्वयं वहाँ पहुँच गये और उन्होंने उस देव को भगवान के पाँव लगवाया। देव ने भी भगवान के पाँव पड़ कर अपने अपराध की क्षमायाचना की। वह मिथ्यात्व का त्याग कर सम्यक्त्वी बन गया। फिर इन्द्र महाराज उसे अपने साथ देवलोक ले गये। इति आमलकी क्रीड़ा। लेखनशाला-महोत्सव ___ जब भगवान आठ वर्ष के हुए, तब उनके माता-पिता ने मोहवश विचार किया कि
SR No.004498
Book TitleKalpsutra Balavbodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYatindravijay, Jayantsensuri
PublisherRaj Rajendra Prakashan Trust
Publication Year1998
Total Pages484
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_kalpsutra
File Size10 MB
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