________________ (164) श्री कल्पसूत्र-बालावबोध उनका रूप सब देवों के रूप से भी अधिक था। यदि सब देवों का रूप एकत्रित करें, तो वह भगवान के बायें पैर के अंगूठे की एक कला के बराबर भी नहीं होता, क्योंकि तीनों लोक में सबसे अधिक रूप श्री तीर्थंकर भगवान का होता है, उससे कम श्री गणधर महाराज का रूप होता है, उससे कम आहारक शरीर वाले साधु का रूप होता है, उससे कम अनुत्तर विमानवासी देवों का रूप होता है, उससे कम नव ग्रैवेयक देवों का रूप होता है। उसके बाद बारहवाँ देवलोक, ग्यारहवाँ, दसवाँ, नौवां, आठवाँ, सातवाँ, छठा, पाँचवा, चौथा, तीसरा, दूसरा और पहला देवलोक ये सब क्रमशः घटते रूपवाले होते हैं। फिर ज्योतिषी देवों का, भवनपति देवों का व्यंतर देवों का, चक्रवर्ती, वासुदेव, बलदेव और सामान्य मांडलिक राजा का रूप क्रमशः घटता हुआ जानना चाहिये। ये सब अनुक्रम से एक एक से हीन हीन रूपवाले जानना। प्रभु की आमलकी क्रीड़ा और देव पर विजय - भगवान जातिस्मरण ज्ञान सहित अप्रतिपाति मति, श्रुत और अवधि इन तीन ज्ञानों के धारक थे। उनकी देहकान्ति सर्वोत्कृष्ट थी। वे निर्भय, बलवान, बुद्धिमान, सुरूपवान, दिव्य स्वरूपधारी, साहसी, सुन्दर, रंगीले, सलौने, रेखाले, रतीले और मतीले थे। खेलते-कूदते वे जब आठ वर्ष के हुए, तब अपनी उम्र के राजकुमारों के साथ क्रीड़ा करते हुए उस देश में प्रसिद्ध आमलकी क्रीड़ा करने के लिए नगर के बाहर एक पीपल के वृक्ष के नीचे पहुँचे। फिर वे सब भाग-दौड़ का खेल खेलने लगे। दो-दो लड़के एक साथ दौड़ते। उनमें से जो पीपल के पेड़ को पहले छू लेता, वह जीत जाता और पीछे रहने वाला हार जाता। फिर हारने वाला जीतने वाले को अपने कंधे पर बिठा कर जिस स्थान से होड़ लगी थी, उस स्थान पर ले जाता। इस प्रकार का खेल भगवान अपनी उम्र के लड़कों के साथ खेल रहे थे। उस समय सभा में बैठे हुए सौधर्मेन्द्र ने अवधिज्ञान से भगवान का महाबल जान कर कहा कि आज के समय में श्री महावीर भगवान के जैसा अन्य कोई बलवान नहीं है। यदि मुझ सहित सब देव मिल कर उन्हें डराने जायें, तो भी