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________________ श्री कल्पसूत्र-बालावबोध (163) से बहुत बढ़े तथा सीमापार के सामन्त राजा और चंडप्रद्योतनादिक राजा भी हमारे वश में हो कर सेवा करने आये। इस कारण से हमने मन में यह सोचा था कि जब हमारे घर पुत्र का जन्म होगा, तब उसका नाम रूपगुणप्रधान 'श्री वर्द्धमान' रखेंगे। अब हमारे मनोरथ सिद्ध हो गये हैं और हमारी इच्छा पूर्ण हो गयी है, इसलिए हम इस कुमार का नाम 'वर्द्धमान' रखते हैं। आप सब लोग भी इसे 'श्री वर्द्धमानकुमार' नाम से बुलाना। इस तरह सब संबंधितों को सिरपाव पहेरामणी दे कर सब सज्जनों की साख से बालक का नामस्थापन किया। फिर उन सबको बिदा किया। श्री वर्द्धमान भगवान कैसे हैं? उनका शरीर सात हाथ बड़ा है, समचतुरस्र संस्थान है, सुवर्णवर्ण देह की निर्मल कान्ति है और वज्रऋषभनाराच संहनन है। भगवान ऐसे हैं। श्री वर्द्धमानस्वामी के कुल तीन नाम थे। एक माता-पिता का दिया हुआ नाम श्री वर्द्धमान और दूसरा राग-द्वेषरहित तपस्या में खेद सहन करने से प्राप्त नाम 'श्रमण' था। तीसरा- जो अकस्मात् उत्पन्न होता है, उसे भय कहते हैं तथा सिंहादिकों के उपद्रव से जो भय उत्पन्न होता है, उसे भैरव कहते हैं। ऐसे भय-भैरवों से वे चलायमान नही हुए, सदा निर्भय रहे, भूख-प्यास प्रमुख परीषहों से वे अस्थिर नहीं हुए। इस प्रकार परीषह तथा उपसर्ग सहन किये तथा सर्वतोभद्रप्रमुख प्रतिमा का पालन किया, वे चार ज्ञान सहित और धैर्यवान थे, अरति-रति परीषह सहन कर, राग-द्वेषरहित हो कर सब सुख-दुःख सहन किये, इससे द्रव्यवीर्य प्राप्त किया। मोक्ष जाने का निश्चय किया है, तो भी चारित्रपालन में तत्पर रहे, ऐसे वीरत्व के गुणों से देवों ने 'श्री महावीरस्वामी' नाम रखा। - भगवान श्री महावीरस्वामी प्रतिदिन चन्द्रकला के समान बढ़ने लगे। वे अनेक दास-दासियों से घिरे रहते। वे अत्यन्त रूपवान थे। उनके सिर पर भौरेसरीखे श्याम केश थे। उनके नेत्र कमलसरीखे थे, बिंबोष्ठ प्रवाल (मूंगे) के समान थे, दाँत सफेद थे, गर्भसरीखा उनका गौरवर्ण था और कमल की गंधसरीखा श्वासोच्छ्वास था।
SR No.004498
Book TitleKalpsutra Balavbodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYatindravijay, Jayantsensuri
PublisherRaj Rajendra Prakashan Trust
Publication Year1998
Total Pages484
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_kalpsutra
File Size10 MB
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