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________________ (162) श्री कल्पसूत्र-बालावबोध नारीकुंजर, पट्टहीर, पटसीओली, पंचसइयां, फूलपगर, फूलकारी, दोरीयां, जादर, चादर, नेत्रपट्ट, धोतीपट्ट, राजपट्ट, गजवड़ी, सुवर्णवड़ी, हंसवड़ी, कालवड़ी, भुअच्चिआ, पटकूल, पट्टहीरसाडी, घाटडी, चीर, कुमखाव, अतलशलाहि, खाराचीनी, पापड़ीआंचीनी, सथीआ, गुआगरी, आसणिआ, आगराइ, सणलीपट्टणी, मशरु, तास्ता, शालू, दोपट्टा, त्रिपट्टा, वास्ता, टुकड़ी, मुगटां, छायल, साडला, रत्नकम्बल, चूनड़ी, घाटड़ी इत्यादिक पांचरंगी वाघा पहेराव्या। ___वली काश्मीरी केशरनां छाटणां कीधां। भला भलां सुगंध बावना चन्दननां विलेपन कीधां। अरगजा, चूआ, चंपेल, फूलेल, केवडो, मोगरो, जाइ, जूही, कुन्द, मचकुन्द, चंपो, मरुओ, डमरो, केतकी अने मालतीप्रमुख फूलोनी मालाओ पहेरावी। पछी मुकुट, तिलक, बाजुबंध, हार, चीर, बेरखां, रत्नावली, मुक्तावली, चन्द्रावली, हीरावली, प्रवालावली, सूर्यावली, ग्रहावली, नक्षत्रावली, श्रोणिसूत्र, कटिसूत्र, पट्टशिखर, चूडामणि, कुंडल, कटक, कंकण, अंगद, मुद्रनन्दक, दशमुद्रक, चक्रक, अजर, मेखला, मुदक, पदक, सांकलु, सांकली, चिचिष्ट, भंगउत्तरी, दारा, हांशडी, कपाली, अवेयक, हेमजाली, मणिजाली, मौक्तिकजाली, वर्णसरीका, झांझर, नेउर, घुघरा, पीगड़ा, बींछिया, अंगुठडी, वालाजाल, झुमणां, अकोटा, रूपाला, हरीयाराखड़ी, गोफणा, उलसीथो, त्रिसंथीयो, त्रोटी, बोरडांकरी, वेढला, मुरकी, मोतीदर गंठोडा, तुंगल, चंपकली, पानडी, होलेरताली, मोतीसर, सरलीया, टीलां, टीली, चान्दला, आड, नवग्रह, मुद्रडी, अंगूठी, वींटी, वांकरूं, गलसरी, छापकरजाली, हेमजाली, मादलीयां, खेल-मादलीयां, कन्दोरा, पाटीयाला कन्दोरा, लटकणमोड, नागफूली, नागला, मोरवेसण, नथवाली, सिंदूर, कुंकुमरीली, जवलाचूड़ी, वरचूड़ी, चूड़ा, कांकणी, कारेली, लाल, पोंची, मेखला, हाथलां, कली, सोनालहेरीयां, तावीत, कडलां, कडली, वांकडी, वेलीयां, लोलीयां इत्यादिक आभरण पहेराव्यां। ए रीते मित्र, ज्ञाति, पोताना क्षत्रियो तथा कुटुंब, सगा संबंधीनी भक्ति विविध प्रकारनी कीधी। इति भोजन तथा आभरण विधि। प्रभु का नामस्थापन ___बालक का नाम श्री वर्द्धमान रखा गया, सो कहते हैं- मित्र, ज्ञाति, गोत्री, स्वजनसंबंधी प्रमुख का सत्कार-सम्मान कर के त्रिशलादेवी तथा सिद्धार्थ राजा ने कहा कि हे देवानुप्रियो ! हमारे घर में यह पुत्र गर्भ में आने के बाद हम रौप्य, अनघड़ सुवर्ण, धान्य, राज्य, वाहन, मान-सम्मान आदि
SR No.004498
Book TitleKalpsutra Balavbodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYatindravijay, Jayantsensuri
PublisherRaj Rajendra Prakashan Trust
Publication Year1998
Total Pages484
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_kalpsutra
File Size10 MB
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