________________ (152) श्री कल्पसूत्र-बालावबोध क्षत्रियकुंडग्राम नगर में दस दिन तक किसी से कर नहीं लेना। गायबैल आदि जानवरों पर दस दिन तक कर नहीं लेना, खेतप्रमुख का कर दस दिन तक नहीं लेना, दस दिन तक कोई भी बाजार में मूल्य ले कर माल न बेचे, जिसे जो वस्तु चाहिये, वह दुकानदार से मुफ्त ले जाये। उसका मूल्य राजभंडार से दिया जायेगा। दस दिन तक कोई चीज नापना नहीं, बिना नापे देना। दस दिन तक कोई भी राजकर्मचारी जबरदस्ती से किसी के घर में प्रवेश कर के कोई भी वस्तु न ले। किसी ने अपराध किया हो, तो उसके अपराध के अनुसार जो दण्ड लिया जाता है, वह दण्ड दस दिन तक नहीं लेना। अल्प अपराध के लिए अधिक दंड लेना कुदंड है। ऐसा कुदण्ड दस दिन तक नहीं लेना तथा दस दिन तक कोई किसी से उधार ले कर ऋण न करे। ये आदेश सिद्धार्थ राजा ने दिये। फिर अत्यन्त स्वरूपवान वेश्याओं के ताल-वाद्य सहित वहाँ नाटक होने लगे। उत्कृष्ट मृदंगादिक वाद्य वहाँ सज्ज किये गये तथा विकसित पुष्पमालाओं के समूह भी वहाँ रखे गये। उस देश के सब लोग हर्षित हो कर क्रीड़ा करने लगे। इस प्रकार दस दिन तक स्थितिपतिका याने अपनी कुलपरम्परा की पुत्रजन्म की मर्यादा सिद्धार्थ राजा ने क्षत्रियकुंड नगर में पूर्ण की। दस दिन की इस कुलमर्यादा में जिस जिनपूजा में सौ सुवर्णमुद्राएँ लगती हैं, हजार सुवर्णमुद्राएँ लगती हैं तथा लाख सुवर्णमुद्राएँ लगती हैं, ऐसे ऐसे पूजनों के निमित्त द्रव्य बाद में पूजा कराने के लिए रखा। इसी प्रकार अष्टमी, चतुर्दशी के दिन पौषध करने वाले श्रावकों की भक्ति के लिए द्रव्य रखा। उसमें अभिप्राय यह था कि यह द्रव्य पौषध करने वालों के पारणे के समय साधर्मिक-वात्सल्य के लिए काम आयेगा। ___ तथा अन्य भी देने योग्य द्रव्य, धर्म के लिए रखा हुआ द्रव्य स्वयं देते हुए, दूसरों से दिलवाते हुए तथा पूर्वोक्त सौ, हजार और लाख सुवर्णमुद्राओं के अनुसार बधाई के लिए लोग जो भेंट लाते थे, उन्हें लेते हुए, दूसरों से लिवाते हुए सिद्धार्थ राजा ने दस दिन तक कुलमर्यादा का पालन किया।