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________________ (153) श्री कल्पसूत्र-बालावबोध बालक को चन्द्र-सूर्य के दर्शन कराने की विधि श्रमण भगवान श्री महावीरस्वामी के माता-पिता ने भगवान के जन्मदिन से पहले दिन कुलस्थिति की और तीसरे दिन चन्द्रमा तथा सूर्य के दर्शन कराये। अब आज के काल में तो काँच दिखाते हैं, परन्तु मूल विधि इस प्रकार है- गृहस्थ गुरु श्री अरिहन्त की प्रतिमा के सम्मुख स्फटिक अथवा रौप्य की चन्द्रमूर्ति तैयार कराये। उसकी प्रतिष्ठा पूजा कर के उसे वहाँ रखे। फिर बालक तथा बालक की माता को स्नान करा कर साफ वस्त्र पहना कर चन्द्रोदय के समय पुत्र को हाथ में ले कर माता सहित पुत्र को बिठा कर प्रत्यक्ष चन्द्रमा के सामने ला कर वह इस तरह मन्त्र बोले "ॐ अर्ह चन्द्रोऽसि निशाकरोऽसि नक्षत्रपतिरसि सुधाकरोऽसि औषधिगर्भोऽसि। अस्य कुलस्य ऋद्धिं वृद्धिं कुरु कुरु" इस मन्त्र का गुरु उच्चारण करे। माता पुत्र को चन्द्रमा दिखा कर नमन कराये। फिर पुत्र को गुरु के पाँव लगाये। तब गुरु इस प्रकार आशीर्वाद दे सौषधिमिश्र मरीचिराजी, सर्वापदां संहरणे प्रवीणः। करोतु वृद्धिं सकलेऽपि वंशे, युष्माकमिन्दुः सततं प्रसन्नः।।१।। इसके बाद चन्द्रमा की स्थापित मूर्ति का विसर्जन करे। यदि उस दिन काली चौदस या अमावस्या हो अथवा बादल हों और इस कारण से चन्द्रमा दिखाई न दे, तो उसी रात को उसी चन्द्रमा की मूर्ति के सम्मुख तो यह विधि अवश्य करे। - फिर उस दिन सुबह सूर्योदय के समय सोने अथवा तांबे की सूर्यमूर्ति बना कर पूर्व के अनुसार स्थापन कर के मूर्ति के सम्मुख पुत्र सहित माता को बिठा कर गृहस्थ गुरु इस तरह मन्त्र बोले- "ॐ अर्ह सूर्योऽसि, दिनकरोऽसि, तमोपहोऽसि, सहस्रकिरणोऽसि, जगच्चक्षुरसि प्रसीदास्य कुलस्य तुष्टिं पुष्टिं मोदं कुरु कुरु" इस सूर्यमन्त्र का उच्चारण कर के माता सहित पुत्र को सूर्य के दर्शन कराये। फिर माता पुत्र को ले कर गुरु के पाँव लगाये। तब गुरु आशीर्वाद देते हुए कहे
SR No.004498
Book TitleKalpsutra Balavbodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYatindravijay, Jayantsensuri
PublisherRaj Rajendra Prakashan Trust
Publication Year1998
Total Pages484
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_kalpsutra
File Size10 MB
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