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________________ श्री कल्पसूत्र-बालावबोध (149) अन्त में अपूर्व एक सौ आठ काव्य की रचना कर के स्तुतिरूप भावपूजा की। इसके बाद भगवान को ले जा कर पुनः माता के पास रखा तथा अवस्वापिनी निद्रा दूर कर के भगवान का प्रतिबिंब वहाँ से हटा दिया। फिर रत्नजड़ित कुंडल-युगल तथा देवदूष्य वस्त्र-युगल त्रिशला माता को अर्पण कर भगवान के खेलने के लिए सुवर्णजड़ित गेंद वहाँ रख कर बारह करोड़ सुवर्णमुद्राओं की वर्षा की। किसी-किसी प्रति में लिखे अनुसार रत्नजड़ित चॅदोवा बाँध कर, रत्नजड़ित दो कुंडल तथा श्रीदाम (रत्नजड़ित सोने की गेंद) तकिये पर रख कर बत्तीस करोड़ सुवर्णमुद्राओं की वर्षा की। फिर सौधर्मेन्द्र ने सब देवों में ऊँची आवाज से घोषणा की कि भो भो देवो ! जो मैं कहता हूँ सो सुनो। यदि कोई देव अथवा असुर-दानव भगवान तथा भगवान की माता का बुरा सोचेगा, तो उसका मस्तक अर्जुनवृक्ष की मंजरी की तरह इस वज्र से मैं धड़ से अलग कर दूंगा। इस प्रकार कह कर भगवान के अंगूठे में अमृतसंचार कर सब इन्द्र नन्दीश्वर द्वीप में गये। वहाँ अट्ठाई महोत्सव कर के अपने अपने स्थान पर गये। वहाँ भी अट्ठाई महोत्सव किया। सिद्धार्थ राजा के भवन में वसुधारादिक वृष्टि ___जिस रात्रि में श्रमण भगवन्त श्री महावीरस्वामी का जन्म हुआ, उस रात्रि में वैश्रमण देव के आज्ञाधारक तिर्यग्नुंभक देवों ने सिद्धार्थ राजा के महल में रौप्य, सुवर्ण, वज्र-हीरे, वस्त्र तथा आभूषणों की वर्षा की, नागरबेल के पत्र, फल, फूल तथा शालिप्रमुख बीजों की वर्षा की तथा माला, गंध, वास, सुगंधित चूर्ण, हिंगलुप्रमुख रंग तथा सुवर्णमुद्राओं की वर्षा की। अगणित वर्षा की। किसी प्रति में ऐसा लिखा है कि पन्द्रह महीने तक तीन करोड़ रत्न बरसाये तथा मुकुट, कुंडल, हार, अर्द्धहार, बाजुबंध, बेरखा, त्रिसरा, चौसरा, छहसरा, सातसरा, आठसरा, नौसरा, अठारहसरा, एकावली, कनकावली, टकावली, रत्नावली, मुकुटावली, चन्द्रावली, हीरावली, प्रवाली, नक्षत्रावली, श्रोणीसूत्र, कटिसूत्र, रसना,
SR No.004498
Book TitleKalpsutra Balavbodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYatindravijay, Jayantsensuri
PublisherRaj Rajendra Prakashan Trust
Publication Year1998
Total Pages484
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_kalpsutra
File Size10 MB
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