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________________ (148) श्री कल्पसूत्र-बालावबोध भुजंगप्रयात सुनो वीर्य बोलूं विशालो विबुधो, नरे बार योधे मली एक गोधो। दशे गोधले लेखवो एक घोड़ो, तुरंगेण बारे मली एक पाड़ो।।१।। दशे पंच महिषो मदोन्मत्त नागो, गजे पाँच सौ केसरी वीर्य तागो। हरि वीश सौ वीर्य अष्टापदेको, दश लक्ष अष्टापदे राम एको।।२।। भला रामयुग्मे समो वासुदेवो, द्वितीय वासुदेवे गणी चक्रि लेवो। भला लक्ष चक्रीसमो नाग शूरो, वली कोडि नागाधिपे इन्द्र पूरो।।३।। अनन्ते सुइन्द्रे मली वीर्य जेतुं, टची अंगुली वीरने वीर्य तेतुं। नमो वीर अर्हन् ! सदा भूत भव्य- भविष्यत्सुरेन्द्रातिवीर्याति सव्य।।४।। मेरु पर्वत ने सोचा कि अनन्त तीर्थंकरों के जन्माभिषेक मुझ पर हुए, पर मुझे किसी ने भी पैर से स्पर्श नहीं किया था। अब श्री वीर भगवान ने मुझे स्पर्श किया है, इसलिए मैं भी धन्य हूँ। यह समझ कर मानो हर्ष से नाचते हुए चिंतन करने लगा कि सचमुच मैं सब पर्वतों का राजा हूँ। पाँच मेरु में भी मैं सचमुच बड़ा अग्रेसर हूँ। ... फिर शक्रेन्द्र के आदेश से प्रथम बारहवें देवलोक के अच्युतेन्द्र ने अभिषेक किया। उसके बाद अनुक्रम से ग्यारहवें, दसवें, नौवें आदि देवलोक के इन्द्रों ने अभिषेक किया। अन्त में चन्द्र और सूर्य ने अभिषेक किया। इस प्रकार कुल ढाई सौ अभिषेक हुए। फिर ईशानेन्द्र भगवान को गोद में ले कर बैठे और सौधर्मेन्द्र ने चार धवल वृषभ के रूप बना कर उनके आठ सींगों से क्षीरसमुद्र के जल की धारा से अभिषेक किया। इस विधि से सब देवों ने अपनी अपनी भक्ति कर के स्नात्र किया। फिर गंधकाषाय्य वस्त्र से भगवान का शरीर पौंछ कर फूल, बावनाचन्दन से विलेपन, अक्षतढोकन, दीप,फल, धूप, जल नैवेद्य से अष्ट प्रकारी पूजा कर के भगवान के सम्मुख श्रीवत्स, मत्स्य-युग्म, दर्पण, पूर्णकलश, स्वस्तिक, नन्दावर्त्त, भद्रासन और सरावसंपुट ये अष्टमंगल रौप्य के अक्षतों से आलेखित किये। फिर आरती, गीतगान और नृत्य कर के बाजे बजाये।
SR No.004498
Book TitleKalpsutra Balavbodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYatindravijay, Jayantsensuri
PublisherRaj Rajendra Prakashan Trust
Publication Year1998
Total Pages484
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_kalpsutra
File Size10 MB
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