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________________ श्री कल्पसूत्र-बालावबोध (147) है कि क्या उन्होंने संसारसमुद्र पार करने के लिए अपने हाथ में कुंभ धारण किया है? क्या वे भाववृक्ष को सींच रहे हैं? क्या वे अपने पापरूप मल को धो रहे हैं? अथवा क्या वे धर्मरूप प्रासाद पर कलश चढ़ा रहे हैं? अब सब देव विचार करने लगे कि इन्द्र महाराज आज्ञा दें, तो कलशों से अभिषेक करें। इन्द्र का संशय. ____ इसी अवसर में इन्द्र महाराज के मन में यह संकल्प (सन्देह) उत्पन्न हुआ कि ये छोटे बालक श्री वीर भगवान इतने सारे कलशों की जलधारा से मेरी गोद में से कही बह गये तो? इतना बड़ा जलाभिषेक ये कैसे सहन कर सकेंगे? यह सोच कर इन्द्र ने अभिषेक के लिए आदेश नहीं दिया। तब भगवान ने अवधिज्ञान के बल से इन्द्र का शंकित मन जान कर अरिहंतत्व का अतुल बल बताने के लिए गोद में बैठे हुए ही बायें पैर के अंगूठे से सिंहासन को स्पर्श किया (दबाया)। तब शिला कंपायमान हो गई। उसके हिलने से मेरुचूलिका कंपायमान हुई। फिर एक लाख योजन का मेरुपर्वत भी डोलने लगा। उसके डोलने से सारी धरती कंपायमान हुई। वह थरथराने लगी। पर्वत के शिखर टूटने लगे। समुद्रजल क्षुभित हुआ (डाँवाडोल हुआ)। ब्रह्मांड फूटने जैसा शब्द हुआ। सब देव भयभीत हुए। देवांगनाएँ भय के कारण देवों के गले लग गयीं। - तब क्रोध से धमधमायमान होकर इन्द्र ने कहा कि अरे ! ऐसे हर्ष के स्थान पर ऐसा उत्पात-विषाद किसने किया? भगवान के जन्ममहोत्सव में ऐसा विघ्न करने वाला कौन दुष्ट है? यह सोच कर हाथ में वज्र ले कर अवधिज्ञान के उपयोग से देखा तो प्रभु की शक्ति मालूम हुई कि यह सब स्वयं भगवान ने ही किया है। मैंने अज्ञान के कारण तीर्थंकर का बल नहीं जाना। ऐसा जान कर इन्द्र भगवान के पाँव पड़ा और क्षमायाचना कर स्तुति करने लगा
SR No.004498
Book TitleKalpsutra Balavbodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYatindravijay, Jayantsensuri
PublisherRaj Rajendra Prakashan Trust
Publication Year1998
Total Pages484
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_kalpsutra
File Size10 MB
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