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________________ श्री कल्पसूत्र-बालावबोध (137) त्रिशलामाता के दोहद अब त्रिशला माता को शुभ दोहद उत्पन्न होते हैं कि मैं पूजा करूँ, दान दूँ, साधर्मिक-वात्सल्य करूँ इत्यादि। ये सब दोहद सिद्धार्थ राजा हर्षसहित सम्मानपूर्वक पूर्ण करते हैं, पर यह नहीं कहते कि तू तो बैठे-बैठे ढोंग करती है। इस तरह वे दोहद का अपमान नहीं करते। इस प्रकार त्रिशलादेवी को उत्पन्न होने वाले दोहद बिल्कुल उसके मन में रहते नहीं हैं। वे पूरे होते हैं। रजवाड़ीप्रमुख वनक्रीडाप्रमुख सब दोहद सिद्धार्थ राजा ने पूर्ण किये। ___ एक दिन त्रिशलादेवी को ऐसा दोहद उत्पन्न हुआ कि मैं इन्द्राणी के कुंडल छीन कर पहनें। यह दोहद राजा से पूरा नहीं हुआ। इससे वह मन में उदास हो गयी। तब सिद्धार्थ राजा ने दोहद की हकीकत जान कर, रानी के मुख से सुन कर कहा कि यह दोहद मैं पूरा करूँगा, पर यह बात मेरे हाथ में नहीं है। . . इतने में इन्द्र महाराज का आसन डोलने लगा। तब उन्होंने अवधिज्ञान से देख कर भगवान की माता का दोहद पूर्ण करने के लिए इन्द्राणीप्रमुख देवांगनाओं के समूह सहित क्षत्रियकुंड नगर के समीप एक महादुर्गम पर्वत पर इन्द्रपुर नामक नगर बसाया। फिर वहाँ जा कर सपरिवार निवास किया। सिद्धार्थ राजा ने जब यह सुना कि इन्द्र महाराज पर्वत पर रहे हुए हैं, तब उन्होंने वहाँ यह सन्देश भेजा कि हमारी रानी को इन्द्राणी के कुंडलों की आवश्यकता है, इसलिए हमें कुंडल दीजिये। पर इन्द्र ने कुंडल नहीं दिये। तब सिद्धार्थ राजा ने सेना ले कर उन पर आक्रमण किया। यद्यपि इन्द्र महाराज जीतने में समर्थ थे, तो भी वे जानबूझ कर हार कर भाग गये। फिर सिद्धार्थ राजा ने रुदन करती हुई अप्सराओं के समूह में बैठी हुई इन्द्राणी के कुंडल छीन कर त्रिशलादेवी को सौंप दिये। इस प्रकार उसका दोहद पूरा किया। इसके अलावा अन्य भी सत्तरभेदी पूजा रचाऊँ, तीर्थयात्रा करूँ, देवगुरु की भक्ति करूँ, सुपात्रदान , इत्यादिक अनेक दोहद जो त्रिशलादेवी
SR No.004498
Book TitleKalpsutra Balavbodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYatindravijay, Jayantsensuri
PublisherRaj Rajendra Prakashan Trust
Publication Year1998
Total Pages484
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_kalpsutra
File Size10 MB
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