________________ (138) श्री कल्पसूत्र-बालावबोध को उत्पन्न हुए, वे सब राजा ने पूर्ण किये। इस तरह पूरितदोहद त्रिशलारानी सोती है, बैठती है, खड़ी होती है तथा अनेक ऋतुओं में सेवन करने योग्य, गर्भ के लिए सुखकारक ऐसा भोजन, आच्छादन, वस्त्र, गंध, मालाप्रमुख लेती है। गर्भ के लिए हितकारक पथ्ययुक्त देशकाल योग्य आहार करती हुई, गर्भपोषण करती हुई, अपने दासी-सहेली प्रमुख परिजनों के साथ विचरती हुई, घूमती हुई अपने आवास में त्रिशलामाता सुखपूर्वक निवास करती है। भगवान श्री महावीरस्वामी का जन्म उस काल में उस समय में श्रमण भगवन्त श्री महावीरस्वामी गरमी का पहला चैत्र महीना - उसका दूसरा पक्ष याने कि चैत्र सुदि तेरस के दिन नौ महीने साढ़े सात दिन बीत गये तब.... (यहाँ नौ महीने साढ़े सात दिन गर्भवास का अधिकार है, परन्तु कम-अधिक, का पाठ हो तो भी इसमें कोई एतराज नहीं है। गर्भ में रहने का काल तो चौबीस तीर्थंकरों का इस प्रकार है- श्री ऋषभदेवजी नौ महीने और चार दिन गर्भ में रहे। श्री अजितनाथजी आठ महीने और पच्चीस दिन, श्री संभवनाथजी नौ महीने और छह दिन, श्री अभिनन्दनस्वामी आठ महीने और अट्ठाईस दिन, श्री सुमतिनाथजी नौ महीने और छह दिन, श्री पद्मप्रभजी नौ महीने और छह दिन, श्री सुपार्श्वनाथजी नौ महीने और छह दिन, श्री चन्द्रप्रभजी नौ महीने और आठ दिन, श्री सुविधिनाथजी आठ महीने और छब्बीस दिन, श्री शीतलनाथजी नौ महीने और छह दिन, श्री श्रेयांसनाथजी नौ महीने और छह दिन, श्री वासुपूज्यजी आठ महीने और बीस दिन, श्री विमलनाथजी आठ महीने और इक्कीस दिन, श्री अनन्तनाथजी नौ महीने और छह दिन, श्री धर्मनाथजी आठ महीने और छब्बीस दिन, श्री शान्तिनाथजी नौ महीने और छह दिन, श्री कुन्थुनाथजी नौ महीने और पाँच दिन, श्री अरनाथजी नौ महने और आठ दिन, श्री मल्लीनाथजी नौ महीने और सात दिन, श्री मुनिसुव्रतस्वामी