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________________ (124) श्री कल्पसूत्र-बालावबोध देखे तो वह राजा बनता है। स्वप्न में पद्मसरोवर, समुद्र और नदी पार करते देखे, तो वह बहुत द्रव्य पाता है। गरम पानी, गुड़ में मिलाया हुआ गाय का गोबर स्वयं को पीते हुए देखे, तो उसे अतिसार रोग होता है और उससे उसकी मृत्यु होती है। देवप्रतिमा की पूजा करता हूँ, यात्रा करता हूँ, ऐसा स्वप्न देखे, तो उसकी सब प्रकार से वृद्धि होती है। हृदय पर कमल ऊगा हुआ देखे, तो उसका शरीर रोग से नष्ट होता है... इत्यादि। इसलिए हे राजन् ! त्रिशला क्षत्रियाणी ने जो चौदह महास्वप्न देखे हैं, वे उदारकारी और मंगलकारी हैं। उनका फल इस प्रकार है- अर्थ का लाभ होगा, भोग का लाभ होगा और सुख का लाभ होगा। इसलिए अवश्य ही त्रिशला क्षत्रियाणी के नौ महीने साढ़े सात दिन बीत जाने पर आपके कुल में ध्वजा समान, दीपक समान, मुकुट समान, पर्वत समान, तिलक समान, कुल की कीर्ति बढ़ाने वाला, कुल का निर्वाह करने वाला, कुल में सूर्य समान तेजस्वी, कुल का आधार, कुल को यश देने वाला, कुल में वृषभ समान, कुल परम्परा बढ़ाने वाला, अत्यन्त सुकोमल हाथपैर वाला, सब इन्द्रियों सहित, लक्षण-व्यंजन गुण सहित, मानोन्मान सहित, सर्वांग सम्पूर्ण, शुभ सौम्याकार तथा जिसका दर्शन वल्लभकारक है, ऐसा पुत्र होगा। वह बालक बाल्यावस्था पार कर पराक्रमी, हाथी-घोड़े-रथ प्रमुख सेना का स्वामी, चार अन्त पृथ्वी तक राज करने वाला चक्रवर्ती राजाधिराज होगा अथवा तीन लोक का नाथ धर्मचक्रवर्ती ऐसा तीर्थंकर होगा। इसलिए त्रिशला क्षत्रियाणी ने लाभ, सुख, महामंगल तथा कल्याणकारक सर्वोत्तम स्वप्न देखे हैं। उन स्वप्न-लक्षण-पाठकों के मुख से अर्थ सुन कर सिद्धार्थ राजा हृदय में हर्षित व सन्तुष्ट हुआ। फिर दोनों हाथ जोड़ कर अंजली कर के उसने स्वप्न-लक्षण-पाठकों से कहा कि ऐसा ही होने वाला है। ऐसा ही अर्थ है। झूठा नहीं है। जैसा मैंने चाहा था, वैसा ही तुम्हारे मुख से ग्रहण किया है। जो तुम कहते हो, वह सत्य है। इस वचन पर किसी टीकाकार ने भोज राजा के समय में हुए गांगातेली का
SR No.004498
Book TitleKalpsutra Balavbodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYatindravijay, Jayantsensuri
PublisherRaj Rajendra Prakashan Trust
Publication Year1998
Total Pages484
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_kalpsutra
File Size10 MB
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