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________________ (114) श्री कल्पसूत्र-बालावबोध चतुर्थ व्याख्यान स्वप्नपाठकों का राजा को आशीर्वाद - स्वप्न-लक्षण-पाठकों ने सिद्धार्थ क्षत्रिय राजा को जय-विजय आदि शब्दों के द्वारा बधाई दी अर्थात् वे बोले कि हे राजन् ! आप दीर्घायुषी हों, अधिकाधिक आजीविका के स्वामी हों, लक्ष्मीवान हों, यशवान हों, बुद्धिमान हों, कीर्तिमान हों। फिर सिद्धार्थ राजा को पार्श्वनाथस्वामी का सेवक जान कर उन्होंने श्री पार्श्वनाथजी की स्तुतिगर्भित आशीर्वाद देते हुए कहा कि दशावतारो वः पायात्, कमनीयाञ्जनद्युतिः।। किं तु दीपो न हि श्रीपः, किं तु वामाङ्गजो जिनः।।१।। जिनके दस अवतार हैं तथा जो मनोहर श्याम कान्तिवान हैं, ऐसे कौन हैं? तब अन्य कोई बोला कि दीप नाम दीये का है, दशा नाम बत्ती का है तथा काजल की श्याम कान्ति है; इसलिए वह दीपक हो सकता है। तब कहते हैं कि वह दीपक तो नहीं है। फिर किसी ने कहा कि वह श्रीपः याने श्री कृष्ण हो सकता है, क्योंकि वह श्याम है और उसके दस अवतार भी हैं। तब कवि ने कहा कि वह न तो दीपक है और न ही श्री कृष्ण। फिर वह कौन है? तब कहते हैं कि वे तो वामादेवी के पुत्र श्री पार्श्वनाथस्वामी हैं, क्योंकि वे दस भव पूरे कर के तीर्थंकर बने। वे श्री पार्श्वनाथ भगवान आपकी रक्षा करें। यहाँ मरुभूति के भव से दस भव गिनने चाहिये। आशीर्वाद सुन कर सिद्धार्थ क्षत्रिय राजा ने उन स्वप्न-लक्षण-पाठकों को प्रणाम किया, वस्त्रादिक प्रदान कर उनका सत्कार किया और उनके सद्गुणों की स्तुति की तथा उन्हें सम्मानित कर पहले से तैयार रखे हुए आठ भद्रासनों पर उन्हें अलग अलग बिठाया। ___ यहाँ कोई प्रश्न करे कि श्री पार्श्वनाथजी का श्रावक सिद्धार्थ राजा-तो सम्यक्त्वी है, फिर उसने मिथ्यात्वी स्वप्नपाठकों को वन्दन क्यों किया? तो इसका उत्तर यह है कि यह तो लोकोपचार विनय है। यह सांसारिकपने का
SR No.004498
Book TitleKalpsutra Balavbodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYatindravijay, Jayantsensuri
PublisherRaj Rajendra Prakashan Trust
Publication Year1998
Total Pages484
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_kalpsutra
File Size10 MB
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