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________________ श्री कल्पसूत्र-बालावबोध (113) लगे, तो एक ही खाट देख कर आपस में सब जन झगड़ने लगे। उनमें से एक बोला कि मेरा दादा बड़ा था और मैं भी बड़ा हूँ, इसलिए मैं इस पर सोऊँगा। फिर दूसरा बोला कि एक दिन वन में सिंह बोला था; उसकी गर्जना घर में बैठे-बैठे सुन कर मेरे बाबा . सात दिन तक ताव आया था, इसलिए मैं ही बड़ा हूँ। तब तीसरा बोला कि मेरे बड़े भ्राता ने सेके हुए सत्ताईस पापड़ एक मुक्के से तोड़ डाले थे, इस कारण से मैं ही बड़ा हूँ। फिर चौथा बोला कि मेरे मामा ने एक उंदरे को हरा दिया था, सो मैं ही बड़ा हूँ। तब पाँचवें ने कहा कि मेरे मामा ने सात सेर खीचड़ी खायी थी। इस पर छठा बोला कि मैं छह गोली की छाछ पीता हूँ। सातवाँ बोला कि मैं तो घर में ही जंगल जाता हूँ। आठवाँ बोला कि मैं तो सात दिन तक सोता रहता हूँ, जागता नहीं हूँ। नौवाँ बोला कि मैं तो बिल्ली से भी डरता हूँ। दसवाँ बोला कि मैं कुत्ता भौंकता है तब भाग जाता हूँ। इस तरह जब एक कहता कि मैं सोऊँगा, तब दूसरा कहता कि मैं सोऊँगा; तू कोई मालिक नहीं है। इस तरह आधी रात तक वे लड़ते रहे। तब उनमें पाँच-सात जो समझदार लोग थे; वे बोले कि अरे ! तुम लड़ो मत। इस शय्या की तरफ पैर कर के सो जाओ। यह न्याय सब को ठीक लगा। अतः सब लोग खाट की तरफ पैर कर के सो गये। और अन्य ने भी सब चीजें अपने-अपने हिस्से के अनुसार बाँट ली। फिर सुबह होने पर राजा के लोग जो निगरानी के लिए रहे थे; उन्होंने जा कर राजा से सब बातें कह दी। तब राजा ने निर्भर्त्सना कर के सब को बिदा किया। उन्हें कहीं भी आदर नहीं मिला। __. ऐसा स्वप्नपाठकों ने परस्पर विचार कर के अपने में से एक जन को मालिक बनाया। फिर जहाँ सिद्धार्थ राजा था, वहाँ गये। वहाँ जा कर सिद्धार्थ राजा को 'जय विजय' शब्दों से बधाई दी। जैनाचार्य श्रीमद् भट्टारक विजय राजेन्द्रसूरीश्वर- सङ्कलिते श्री कल्पसूत्रबालावबोधे तृतीयं व्याख्यानं समाप्तम्। 卐卐
SR No.004498
Book TitleKalpsutra Balavbodh
Original Sutra AuthorN/A
AuthorYatindravijay, Jayantsensuri
PublisherRaj Rajendra Prakashan Trust
Publication Year1998
Total Pages484
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari & agam_kalpsutra
File Size10 MB
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